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Toggleश्री गणेश जी की कथा
श्री गणेश जी को विघ्नहर्ता और शुभारंभ के देवता माना जाता है। उनकी पूजा के बिना किसी भी कार्य की शुरुआत अधूरी मानी जाती है। उनकी कथा अद्भुत और प्रेरणादायक है। यहाँ श्री गणेश जी की एक प्रसिद्ध कथा प्रस्तुत की गई है:
गणेश जी का जन्म
एक बार माता पार्वती ने स्नान करते समय अपने शरीर के उबटन से एक सुंदर बालक का निर्माण किया। उन्होंने उस बालक को प्राण देकर अपना पुत्र बनाया और उससे कहा, “जब तक मैं स्नान कर रही हूँ, तुम द्वार पर पहरा देना और किसी को भी अंदर न आने देना।”
थोड़ी देर बाद भगवान शिव वहाँ आए और अंदर जाने लगे। लेकिन गणेश जी ने उन्हें रोक दिया। भगवान शिव ने कहा, “मैं पार्वती का पति हूँ, मुझे अंदर जाने दो।” लेकिन गणेश जी ने उन्हें मना कर दिया। इससे भगवान शिव को क्रोध आ गया, और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर काट दिया।
माता पार्वती का क्रोध
जब माता पार्वती ने यह दृश्य देखा तो वह अत्यंत क्रोधित हो गईं और सृष्टि के सभी देवताओं को श्राप देने लगीं। इससे सभी देवता डर गए और भगवान शिव से समाधान निकालने का अनुरोध करने लगे।
भगवान शिव ने तुरंत आदेश दिया कि पृथ्वी पर जाकर किसी प्राणी का सिर लेकर आओ जो उत्तर दिशा की ओर मुख किए हुए हो। उनके गण एक हाथी के बच्चे का सिर लेकर आए। भगवान शिव ने उस सिर को गणेश जी के शरीर से जोड़ दिया और उन्हें जीवनदान दिया। इस प्रकार गणेश जी का पुनर्जन्म हुआ।
गणेश जी को प्रथम पूज्य का आशीर्वाद
देवताओं ने गणेश जी की बुद्धि, समर्पण और कर्तव्यपरायणता को देखकर उनकी स्तुति की। भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे सभी देवताओं में प्रथम पूज्य होंगे। किसी भी शुभ कार्य से पहले उनकी पूजा की जाएगी।
कथा का संदेश
श्री गणेश जी की कथा हमें यह सिखाती है कि कर्तव्य निभाना सर्वोपरि है, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। साथ ही यह कथा हमें गणेश जी की सरलता, बुद्धिमत्ता, और सृष्टि के प्रति उनके महत्व को दर्शाती है।
जय श्री गणेश!
श्री गणेश जी की पूजा करने से सभी विघ्न दूर होते हैं और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
श्री गणेश आरती
श्री गणेश जी की आरती
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एकदंत दयावंत, चार भुजाधारी।
माथे पर तिलक सोहे, मूसे की सवारी॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
अंधन को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डू चढ़े, नारियल चढ़े, और चढ़े मेवा॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
दीनन की लाज राखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
इस आरती को सच्चे मन से गाने से भगवान गणेश की कृपा अवश्य मिलती है।
“जय श्री गणेश!”
श्री गणेश और महाभारत लेखन की कथा
महाभारत, जिसे विश्व का सबसे महान महाकाव्य माना जाता है, का लेखन श्री गणेश जी ने किया था। इस कथा में गणेश जी के अद्भुत बुद्धि और लेखन क्षमता का वर्णन है। यह कहानी महर्षि वेदव्यास और भगवान गणेश के बीच हुई एक दिव्य घटना को दर्शाती है।
कथा का आरंभ
महर्षि वेदव्यास ने महाभारत के संपूर्ण कथानक का सृजन किया। जब उन्होंने इसे लिखने का विचार किया, तो उन्हें एहसास हुआ कि यह कार्य इतना विशाल और कठिन है कि इसके लिए एक अद्वितीय लेखक की आवश्यकता होगी। इसलिए, वे भगवान ब्रह्मा के पास गए और उन्हें यह समस्या बताई।
भगवान ब्रह्मा ने उन्हें सुझाव दिया कि गणेश जी से सहायता मांगें, क्योंकि गणेश जी बुद्धि, विवेक और लेखन के देवता हैं। महर्षि वेदव्यास गणेश जी के पास गए और उन्हें महाभारत लिखने का निवेदन किया।
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गणेश जी की शर्त
गणेश जी ने वेदव्यास की बात सुनकर कहा, “मैं यह महाकाव्य अवश्य लिखूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है। आप रचना बोलते रहें और मैं बिना रुके लिखता रहूं। यदि आप एक क्षण के लिए भी रुक गए, तो मैं लिखना बंद कर दूंगा।”
महर्षि वेदव्यास ने यह शर्त स्वीकार कर ली, लेकिन उन्होंने भी गणेश जी के लिए एक शर्त रखी। उन्होंने कहा, “आप जो भी लिखें, पहले उसका अर्थ पूरी तरह से समझ लें और फिर लिखें।”
गणेश जी ने यह शर्त मान ली, और इस प्रकार महाभारत का लेखन आरंभ हुआ।
महाभारत लेखन का प्रसंग
गणेश जी अपनी तेज गति से लिखने लगे, और महर्षि वेदव्यास महाभारत के श्लोक बोलते रहे। लेकिन वेदव्यास जानते थे कि गणेश जी बहुत ही बुद्धिमान और तेज हैं। वे चाहते थे कि गणेश जी उनके विचारों को समझकर लिखें, ताकि उन्हें सोचने और नए श्लोक तैयार करने का समय मिल सके।
इसलिए, जब भी वेदव्यास को अधिक समय चाहिए होता, वे अत्यंत जटिल श्लोक बोलते। गणेश जी को इन जटिल श्लोकों का अर्थ समझने में समय लगता, और इस दौरान वेदव्यास नए श्लोक रच लेते।
गणेश जी का टूटा हुआ दांत
एक अन्य कथा के अनुसार, जब गणेश जी लिखने लगे, तो उनकी लेखनी टूट गई। लेकिन कार्य को पूरा करने के संकल्प के कारण उन्होंने अपने एक दांत को तोड़कर उसका उपयोग लेखनी के रूप में किया। इस प्रकार गणेश जी “एकदंत” कहलाए। यह उनकी निष्ठा और समर्पण का प्रतीक है।
महाभारत का समापन
महाभारत का लेखन समाप्त होने में वर्षों लगे। यह महाकाव्य 1,00,000 से अधिक श्लोकों का संग्रह है, जिसमें जीवन, धर्म, नीति, राजनीति, कर्तव्य और ज्ञान की अद्भुत बातें हैं।
गणेश जी और वेदव्यास के इस अद्वितीय सहयोग ने मानव जाति को महाभारत जैसा महान ग्रंथ प्रदान किया, जो आज भी प्रेरणा का स्रोत है।
कथा का संदेश
यह कथा सिखाती है कि किसी भी कार्य को निष्ठा और समर्पण के साथ पूरा किया जा सकता है। गणेश जी की बुद्धि और वेदव्यास की विचारशीलता ने इस असंभव कार्य को संभव बनाया।
“जय श्री गणेश!”
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