Ujjain Mahakal Mandir History । उज्जैन महाकाल मंदिर इतिहास

उज्जैन महाकाल मंदिर- Ujjain Mahakal Mandir:

उज्जैन महाकाल मंदिर

पौराणिक कथाओं की मानें यह मंदिर 800 से 1000 वर्षों से भी पुराना है, इस मंदिर का विस्तार राजा विक्रमादित्य ने करवाया था, जबकि आज का जो महाकाल मंदिर है उसका निर्माण 150 वर्ष पूर्व राणा राणोजी सिंधिया के मुनीम रामचंद्र बाबा शेण बी ने करवाया था, इस मंदिर के निर्माण में मंदिर से जुड़ी प्राचीन अवशेषों का भी प्रयोग किया गया है।

महाकालेश्वर का इतिहास: आक्रमण से बचाने के लिए 500 वर्ष तक कुएं में रखा था ज्योतिर्लिंग जाने पुनर्निर्माण की कहानी।
मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग देश का इकलौता दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। यहां भगवान भक्तों को कालों के काल महाकाल के रूप में दर्शन देते हैं। महाकाल मंदिर से जुड़ी कई प्राचीन परंपराएं और रहस्य है। कहा जाता है कि अवंतिकापूरी के राजा विक्रमादित्य बाबा महाकाल के भक्त थे और भगवान शिव के ही आशीष से उन्होंने यहां करीब 132 सालों तक शासन किया। महाकालेश्वर मंदिर कितना प्राचीन है इसकी सटीक जानकारी मिलना बेहद मुश्किल है, लेकिन सदियों से यह स्थान लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।

#आखिर क्यों भगवान शिव को पुकारा गया महाकाल, जानिए इसके पीछे की पौराणिक गाथा।

उज्जैन महाकाल मंदिर

मंदिर का इतिहास बेहद रोचक है। मुगलों और ब्रिटिश हुकूमत के अधीन रहने के बाद भी देश के इस पावन स्थल ने अपनी पुरातन पहचान को नहीं खोया। सनातन धर्म की पताका को ऊंचा रखने के लिए धर्म की रक्षा से जुड़े लोगों ने ज्योतिर्लिंग को तरह-तरह से जतन कर आक्रांताओं से सुरक्षित रखा। कई दशक बीत जाने के बाद वर्तमान दौरे में मंदिर का एक अलग ही रूप दर्शनार्थियों को देखने को मिला है। वही आज 11 अक्टूबर महाकाल लोक के लोकार्पण के बाद लोग उसके एक अलग वैभव को देखेंगे। आइए हम आपको ऐतिहासिक दिन पर आपको महाकालेश्वर इतिहास से रूबरू करवाते हैं।

#कुएं में छुपा कर रखा गया था ज्योतिर्लिंग:

उज्जैन महाकाल मंदिर

कहा जाता है कि 1235 में महाकालेश्वर मंदिर को दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था। आक्रमण के दौर में महाकाल मंदिर के गर्भ गृह में स्थित स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को आक्रांताओं से सुरक्षित बचाने के लिए करीब 550 वर्ष तक पास में ही बने एक कुएं में रखा गया था। औरंगजेब ने मंदिर के अवशेषों से एक मस्जिद का निर्माण करवा दिया था। मंदिर टूटने के बाद करीब 500 वर्ष से अधिक समय तक महाकाल का मंदिर जीर्ण- शीर्ण अवस्था में रहा और ध्वस्त मंदिर में ही महादेव की पूजा आराधना की जाती थी, लेकिन ए जॉब कई वर्ष बाद 22 नवंबर 1728 में मराठा शुरवीर राणोजी राव सिंधिया ने मुगलों को परास्त किया तो उन्होंने मंदिर तोड़कर बनाई गई उस मस्जिद को गिराया और 1732 में उज्जैन में फिर से मंदिर का निर्माण करवाया और ज्योतिर्लिंग की स्थापना की। राणोजी ने बाबा महाकाल ज्योतिर्लिंग को कुंड से बाहर निकलवाया और फिर से महाकाल मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। इसके बाद राणोजी ने ही 500 वर्ष के बाद सिंहस्थ आयोजित भी दोबारा शुरू करवाया।

#इन राजाओं ने करवाया मंदिर का पुनर्निर्माण:

उज्जैन महाकाल मंदिर

महाकवि कालिदास के ग्रंथ मेघदूत में महाकाल मंदिर की संध्या आरती का जिक्र मिलता है। साथी इस ग्रंथ में महाकाल बन की कल्पना भी की गई है। कहा जाता है कि उज्जैन के तत्कालीन राजा विक्रमादित्य ने महाकाल मंदिर का विस्तार करवाया था। उन्होंने मंदिर परिसर में धर्म सभा बनवाई, जहां से वह न्याय किया करते थे। राजा विक्रमादित्य ने कई प्रकार की प्रतिमाओं का निर्माण भी करवाया था। वही सातवीं शताब्दी बाणभट्ट के कांदिवनी में महाकाल मंदिर का विस्तार से वर्णन किया गया है। 11वीं शताब्दी में राजा भोज ने देश के कई मंदिरों का निर्माण करवाया था जिसमें महाकालेश्वर मंदिर भी शामिल है।

#महाकालेश्वर मंदिर से जुड़े रहस्य नहीं जानते होंगे आप:

उज्जैन महाकाल मंदिर

भगवान शिव को समर्पित यह है स्वयंभू ज्योतिर्लिंग मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में बना है। इस मंदिर का कई पौराणिक कथाओं में काफी सुंदर वर्णन मिलता है। देश दुनिया से यहां सभी महाकाल भगवान शिव के दर्शन हेतु पूरे साल आते रहते हैं। मगर कुंभ के दौरान यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इसके साथ ही मान्यताओं के अनुसार मंदिर से जुड़ी कई कभी किंवदंती भी प्रचलित है। जिस कारण से यह मंदिर है पर्यटकों की सूची में सबसे ऊपर आता है। महाकालेश्वर मंदिर से जुड़े रहस्य जिन्हें आज तक कोई नहीं जान पाया।

#महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण कैसे हुआ:

उज्जैन महाकाल मंदिर

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भक्तों की दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के दर्शन होते हैं। महाकालेश्वर मंदिर मुख्य रूप से तीन हिस्सों में विभाजित है। इस के ऊपरी हिस्से में नाग चंदेश्वर मंदिर, है नीचे ओंकारेश्वर मंदिर है और सबसे नीचे जाकर आपको महाकाल मुख्य ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान नजर आते हैं। यहां आपको भगवान शिव के साथ ही गणेश जी, कार्तिकेय, और माता पार्वती की मूर्तियों के भी दर्शन होंगे, इसके साथ ही यहां एक कुंड है जिसमें स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं।

#महाकालेश्वर मंदिर कैसे प्रकट हुए:

उज्जैन महाकाल मंदिर

मान्यताओं के अनुसार उज्जैन में महाकाल के प्रकट होने से जुड़ी एक कथा है। दरअसल दूषण नामक असुर से प्रांत के लोगों की रक्षा के लिए महाकाले यहां प्रकट हुए थे। फिर जब दूषण का वध करने के बाद भक्तों ने शिवजी से उज्जैन में ही वास करने की प्रार्थना की तो भगवान शिव महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। ऐसे उज्जैन का शास्त्रों में वर्णन भगवान श्री कृष्ण को लेकर भी मिलता है क्योंकि उनकी शिक्षा यही हुई थी।

उज्जैन की प्राचीन काल से ही एक धार्मिक नगरी की उपाधि प्राप्त है। आज भी यहां भारी संख्या में दर्शनों के लिए भक्त आते हैं। दरअसल भगवान महाकाल की भस्म आरती के दुर्लभ पलों का साक्षी बनने का ऐसा सुनहरा अवसर और कहीं नहीं प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि जो इस आरती में शामिल हो जाए उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इसके बिना आपके दर्शन पूरे भी नहीं माने जाते हैं। इसके अलावा यहां नाग चंदेश्वर मंदिर और महाकाल की शाही सवारी आदि भी पर्यटकों में जिज्ञासा का विषय बने रहती है।

  • #क्यों होती है भस्म आरती:
  • हर सुबह महाकाल की भस्म आरती करके उनका सिंगार होता है और उन्हें ऐसे जगाया जाता है। इसके लिए वर्ष पहले शमशान से भस्म लाने की परंपरा थी। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में अब कपिला गांव के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बैर की लकड़ियों को जलाकर तैयार किए गये भस्म को कपड़े से छानने के बाद इस्तेमाल करना शुरू हो चुका है। केबल उज्जैन में आपको यह आरती देखने का सुनहरा अवसर प्राप्त होता है। दरअसल भस्म को सृष्टि का सार माना जाता है, इसलिए प्रभु हमेशा इसे धारण किए रहते हैं।
  • #यह है इसके खास नियम;
  • यहां के नियमअनुसार, महिलाओं को आरती के समय घुंघट करना पड़ता है। दरअसल महिलाएं इस आरती को नहीं देख सकती हैं। इसके साथ ही आरती के समय पुजारी भी मात्र एक धोती में आरती करते हैं। किसी भी प्रकार के वस्त्र को धारण करने की मनाई रहती है। महाकाल की भस्म आरती के पीछे यह एक मान्यता भी है। कि भगवान शिव जी शमशान के साधक है, इस कारण से भस्म को उनका श्रृंगार-आभूषण माना जाता है। इसके साथ ही ऐसी मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग पर चढ़े भस्म को प्रसाद रूप में ग्रहण करने से रोग दोषों की भी मुक्ति मिल जाती है।
  • #नाम से जुड़ा है रहस्य;
  • कहते हैं महाकाल का शिवलिंग तब प्रकट हुआ था जब राक्षसों को मारना था। उस समय भगवान शिव राक्षस के लिए काल बन कर आए थे। फिर उज्जैन के लोगों ने महाकाल से वहीं रहने को कहा। और वह वहीं स्थापित हो गए ऐसे में शिवलिंग काल के अंत तक यही रहेंगे इसीलिए भी महाकालेश्वर नाम दे दिया गया।
  • #उज्जैन में रात क्यों नहीं रह सकते:
  • जिस क्षण से महाकाल उज्जैन में विराजित हुए हैं, उसे शनि से आज तक उज्जैन का कोई और राजा नहीं हुआ है, मुझे इनके केवल एक ही ही शासक है, और वह है प्रभु महाकाल, पौराणिक कथाओं के अनुसार कोई भी राजा उज्जैन में रात्रि निवास नहीं करता है, क्योंकि आज भी बाबा महाकाल ही उज्जैन के राजा है।
  • #महाकाल के दर्शन करने से क्या लाभ होता है;
  • धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव एकमात्र ऐसे देवता है जो थोड़े जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं। और अपने भक्तों की हर इच्छा को पूरा कर देते हैं। इसी प्रकार जो भी भक्त महाकालेश्वर के दर्शन कर अपनी मनोकामना करता है, महादेव उनके हर मनोकामना को पूर्ण करते हैं।

हमने ये जानकारी इतिहासिक किताबों और कई इतिहासिक ग्रन्थों से ली है कोई भी त्रुटि हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हैं अधिक जानकारी और सुझाव के लिए contactus@vaishnomata.in पर संपर्क करें।

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