Manimahesh Yatra Story In Hindi – मणिमहेश यात्रा की कहानी

        ।। मणिमहेश यात्रा की कहानी।। जय महाकाल रहस्य की बात यह है, कि जिस समय मणी चमकती है, उससे काफी समय के बाद सूर्योदय होता है। यहां पर श्रद्धालु चमकती मणी को देखने के लिए रात भर जागते हैं। यही कारण है कि इस पवित्र पर्वत को मणिमहेश के नाम से … Read more

Kamakhya Devi Temple History – कामाख्या मंदिर में छुपे हैं कुछ रहस्य ।

कामाख्या मंदिर

कामाख्या मंदिर में छुपे हैं कुछ ऐसे रहस्य जिनके बारे में जानकर आप भी चौंक जाएंगे। कामाख्या मंदिर का इतिहास. पुराणिक कथा के अनुसार जब देवी सती अपने योग शक्ति से अपना देह त्याग गई थी। तब भगवान शिव उनको लेकर घूमने लगे उसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता के 51 … Read more

Naina Devi Temple – नैना देवी मंदिर का इतिहास

Naina Devi Temple

इस लेख में आप जानेंगे की नैना देवी मंदिर का इतिहास, मंदिर कैसे। कब जा सकते हैं, मंदिर की सम्पूर्ण जानकारी: नैना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश। नैना देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में है। यह शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ी पर स्थित एक भव्य मंदिर है। नैना देवी मंदिर का अर्थ है वाली … Read more

Mata Chamunda Devi Temple – चामुंडा देवी मंदिर का इतिहास और कहानी

Chamunda Devi

चामुंडा देवी मंदिर का इतिहास और कहानी: चामुंडा देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश राज्य के चंबा जिले में स्थित एक प्राचीन मंदिर और एक प्रमुख आकर्षक स्थल है। चामुंडा देवी के मंदिर का निर्माण वर्ष 1762 मैं उमेद सिंह ने किया था। पाटीदार और लाहला के जंगल में बानेर नदी के तट पर स्थित यह मंदिर … Read more

Mata Jawala Devi Temple । ज्वाला देवी के मंदिर का इतिहास 2023

Maa Jawala Devi History

 ज्वाला देवी के मंदिर का इतिहास 2023   ज्वाला देवी हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलोमीटर की दूरी पर ज्वाला देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। जवाला मंदिर को जोता वाली मां का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी … Read more

History Of Mata Chintapurni । माता चिंतपूर्णी की कहानी | माता चिंतापूर्णी का इतिहास 2023

माता चिंतपूर्णी

माता चिंतपूर्णी की कहानी:

आज मैं फिर आपको एक तीर्थ स्थान के बारे में बताने जा रही हूं। हिमाचल प्रदेश देवी देवताओं की भूमि है यहां के हर कोने में किसी ना किसी देवी देवता का मंदिर स्थित है। और यहां के हर मंदिर का अपना अलग ही महत्व है। हिमाचल में मुख्य 51 शक्ति पीठ है जो मुख्यता देवी सती के ही रूप है।

History Of Mata Chintapurni

आज मैं आपको जिस देवी की कहानी बताने जा रही हूं। वो हिमाचल के ऊना जिले में स्थित माता चिंतपूर्णी का मंदिर है। चिंतपूर्णी माता आर्थिक चिंता को दूर करने वाली माता है। चिंतपूर्णी माता को छिन्मस्तिका के नाम से भी पुकारा जाता है। छिन्मस्तिका का अर्थ है एक ऐसी देवी जो बिना सर के है। कहा जाता है कि इस स्थान पर माता सती के चरण गिरे थे।

 देवी की उत्पत्ति की कथा:

चिंतपूर्णी माता सती का ही एक रूप है। सती माता दक्ष की पुत्री थी। सती माता शिव को बहुत पसंद करती थी। माता सती शिव से शादी करना चाहती थी। परंतु दक्ष उनकी शादी शिव से नहीं करवाना चाहते थे। क्योंकि दक्ष भगवान शिव को अपने बराबर नहीं मानता था। माता सती ने अपने पिता के खिलाफ जाकर भगवान शिव से शादी की थी। सती की भगवान शिव से शादी करने पर दक्ष बहुत क्रोधित हुआ था।एक दिन दक्ष ने अपने घर पर यज्ञ करवाया। दक्ष ने घर पर सब को बुलाया परंतु भगवान शिव को यज्ञ मे नहीं बुलाया।

माता सती:

माता सती

यह देखकर माता सती को बहुत क्रोध आया और उन्होंने वहां जाकर अपने पिता से इस अपमान का कारण पूछने के लिए उन्होंने शिव भगवान से वहां जाने की आज्ञा मांगी परंतु भगवान शिव ने उन्हें वहां जाने से मना कर दिया।माता सती के बार-बार आग्रह करने पर भगवान ने उन्हें जाने दिया।जब बिन बुलाए यज्ञ में पहुंची तो उनके पिता दक्ष ने उन्हें काफी बुरा भला कहा। और साथ ही साथ भगवान शिव के लिए काफी बुरा भली बातें कही।जिसे माता सती सहन नहीं कर पाई और उन्होंने उसी यज्ञ की आग में कूद कर अपनी जान दे दी।

History Of Mata Chintapurni

माता सती होने के बात जब भगवान शिव को पता चले तो उनको बहुत क्रोध आया क्रोध में आकर उन्होंने तब रूद्र रूप धारण किया था। दक्ष के यज्ञ में आकर भगवान शिव ने सती माता को अग्नि में सती होते हुए देखा तो उन्होंने क्रोध में आकर दक्ष के सर को कलम कर दिया था। और भगवान और शिव सती माता के शरीर को उठाकर आकाश में चले गए थे। भगवान विष्णु ने भगवान शिव के क्रोध को शांत करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से माता के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए थे।

जो आज 51 शक्ति पीठ ठोकी टुकड़ों से जाने जाते हैं। 51 टुकड़ों में से एक टुकड़ा हिमाचल के ऊना जिले में स्थित प्रसिद्ध धार्मिक स्थल चिंतपूर्णी के नाम से जाना जाता है।

mata chintapurni

माता चिंतपूर्णी का मंदिर:

हिमाचल प्रदेश देवी देवताओं की भूमि है। हिमाचल प्रदेश के कोने-कोने में बहुत से प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। चिंतपूर्णी अर्थात चिंता को दूर करने वाली देवी जिसे चिन्मस्तिका भी कहा जाता है। कहा जाता है कि यहां पर पार्वती के पवित्र पावं गिरे थे। छिन्नमस्तिका का अर्थ है बिना सर वाली देवी।

History Of Mata Chintapurni

चिंतपूर्णी जाने के लिए होशियारपुर, चंडीगढ़, दिल्ली, धर्मशाला, शिमला, और बहुत से अन्य स्थानों से होकर बसे वहां पहुंचती है। यहां पर वर्ष में 3 बार मेले लगते हैं। पहला चैत्र मास के नवरात्रों में, नवरात्रों में या श्रद्धालुओं की काफी भीड़ लगी रहती है। यहां पर दूर-दूर से श्रद्धालु माता चिंतपूर्णी के दर्शन के लिए आते हैं।

कहा जाता है कि जहां जो भी भक्त अपनी चिंता को लेकर आता है माता उनकी सारी चिंता को दूर कर देती है। चिंतपूर्णी में बहुत से धर्मशाला है जो बस अड्डे के पास स्थित है और कुछ मंदिर के निकट स्थित है।

चिंतपूर्णी माता के मंदिर का ऐतिहासिक कुछ इस प्रकार है।प्राचीन कथाओं के अनुसार 14वीं शताब्दी मैं माई दास नामक भक्तों ने इस स्थान की खोज की थी। माई दास का जन्म अठूर गांव, पटियाला में हुआ था। माई दास जी के दो बड़े भाई थे दुर्गादास है देवीदास। माई दास का ज्यादा समय पूजा-पाठ में ही होता था।इसीलिए वह परिवार से अलग रहते थे। और उनके कार्यों में भी हाथ नहीं बटा पाते थे।

History Of Mata Chintapurni

माई दास अपने परिवार से अलग रहते थे। एक दिन माई दास जी अपने ससुराल जा रहे थे। चलते-चलते मैं बहुत थक चुके थे। रास्ते में एक बट वृक्ष के नीचे आराम करने लग पड़े। यह वही वट वृक्ष था। जहां मां दुर्गा भगवती जी का मंदिर बना हुआ है। वहां बहुत ही घना जंगल हुआ करता था। तब इस जगह का नाम छपरोह था, आजकल उस स्थान को चिंतपूर्णी माता के नाम से जाना जाता है।

थकावट के कारण माई दास की आंख लग गई और स्वपन मैं उन्हें दिव्य कन्या के दर्शन हुए, जो उन्हें कह रही थी की माई दास इसी वटवृक्ष के नीचे मेरी पिंडी बनाकर उसकी पूजा करो। तब स्वपन में आकर माता ने माई दास को कहां की अगर तुम मेरे पूरे दिल से पूजा करोगे तो मैं तुम्हारे सारे दुख दूर कर दूंगी।

यह सब देखकर माई दास को कुछ समझ में नहीं आया और वह अपने ससुराल चला गया। ससुराल से वापस आते समय उसी स्थान पर माई दास जी के कदम फिर रुक गए। माई दास को आगे कुछ दिखाई नहीं दिया। वह फिर उसी बट वृक्ष के नीचे जाकर बैठ गया।और माता की स्तुति करने लग पड़ा। मई दास ने मन ही मन माता से प्रार्थना की कि हे दुर्गा मां यदि मैंने सच्चे मन से आपकी प्रार्थना की है तो मुझे दर्शन देकर मुझे आदेश दो।

माता की बार-बार स्तुति करने पर उन्हें मां दुर्गा के दर्शन हुए। माता ने माई दास को कहा कि मैं उस बट वृक्ष के नीचे चिरकाल से विराजमान हूं। लोग मुझे आक्रमण तथा अत्याचारों के कारण मुझे भूल गए हैं। माता ने कहा माई दास तुम मेरे परम भक्त हो। अतः यहां रहकर मेरी आराधना करो। और यहां रह कर तुम्हारे वंश की रक्षा में करूंगी।

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माता चिंतपूर्णी

माई दास जी ने कहा कि मैं यहां पर रहकर कैसे आप की आराधना करूंगा। यह तो बहुत ही घने जंगल है, ना तो यहां पीने के लिए पानी है, ना रहने के लिए कोई स्थान है, और ना ही कुछ खाने के लिए यहां उपयुक्त है। तो मैं यहां कैसे इन घने जंगलों में रहूंगा। माई दास की यह बात सुनकर माता दुर्गा ने कहा कि मैं तुमको निर्भय दान देती हूं कि तुम किसी भी स्थान पर जाकर कोई भी शिला उखाडो वहां से जल निकल आएगा। उसी जल से तुम मेरी पूजा करना।

आज उसी वट वृक्ष के नीचे मां चिंतपूर्णी का भव्य मंदिर बना हुआ है और वह शीला आज भी उस मंदिर में रखी हुई है, जिस स्थान पर जल निकला था वहां आज सुंदर तालाब बना हुआ है। आज भी उसी जल से मां चिंतपूर्णी का अभिषेक किया जाता है। हमारे पुराणों के अनुसार यह स्थान 4 महारुद्र के मध्य स्थित है। एक और कालेश्वर महादेव, दूसरी और शिवबाड़ी, तीसरी और नारायण महादेव, चौथी और मुचकंद महादेव है।

हमने ये जानकारी इतिहासिक किताबों और कई इतिहासिक ग्रन्थों से ली है कोई भी त्रुटि हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हैं अधिक जानकारी और सुझाव के लिए contactus@vaishnomata.in पर संपर्क करें।

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