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माता वैष्णो देवी की कथा “Story of Mata Vaishno Devi” (2025)

by Raghav Rajput
December 13, 2024
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Table of Contents

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  •                            
  • माता वैष्णो देवी की कथा
        • माता का जन्म और उनकी दिव्यता
        • श्री राम से भेंट
        • माता का तप और नामकरण
        • भैरवनाथ का प्रकट होना
        • भैरवनाथ का वध
      • गुफा और पवित्र पिंडी
      • माता के दर्शन की महिमा
      • मंदिर की स्थिति और यात्रा
      • माता वैष्णो देवी की आरती
      • माता वैष्णो देवी की कृपा

                           

माता वैष्णो देवी की कथा

माता का जन्म और उनकी दिव्यता

कहानी के अनुसार, सतयुग में पृथ्वी पर जब अधर्म बढ़ने लगा, तब भगवान विष्णु की भक्ति और धर्म की स्थापना के लिए देवी ने मानव रूप धारण किया। एक तपस्वी ब्राह्मण के घर में कन्या के रूप में उनका जन्म हुआ। उनका नाम त्रिकुटा रखा गया। त्रिकुटा बचपन से ही भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थीं और उनकी पूजा-आराधना में लीन रहती थीं।

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श्री राम से भेंट

त्रेता युग में जब भगवान राम रावण से युद्ध के लिए लंका जा रहे थे, तब त्रिकुटा ने भगवान राम से भेंट की। त्रिकुटा ने भगवान राम से उनके साथ विवाह की इच्छा प्रकट की। भगवान राम ने कहा कि वे केवल सीता के प्रति समर्पित हैं, लेकिन उन्होंने त्रिकुटा को आशीर्वाद दिया कि वह काली, सरस्वती और लक्ष्मी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सभी युगों में उनकी पूजा होगी।

माता का तप और नामकरण

भगवान राम के आदेश पर त्रिकुटा ने तपस्या शुरू की। तपस्या के कारण त्रिकुटा को “वैष्णवी” नाम से पुकारा जाने लगा। वे त्रिकुटा पर्वत पर ध्यान और साधना करने लगीं।

भैरवनाथ का प्रकट होना

भैरवनाथ, जो एक तांत्रिक थे, ने माता वैष्णो देवी की शक्ति के बारे में सुना और उन्हें अपनी तपस्या से विचलित करने का प्रयास किया। माता ने उनके बुरे इरादों को समझ लिया और स्थान बदलने लगीं। भैरवनाथ ने माता का पीछा किया। माता ने अंत में गुफा में प्रवेश कर ध्यान किया और अपने संरक्षण के लिए हनुमान जी को बुलाया।

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भैरवनाथ का वध

माता ने अपनी दिव्य शक्ति से भैरवनाथ का वध किया। मरने से पहले भैरवनाथ ने माता से क्षमा मांगी। माता ने उसे आशीर्वाद दिया कि उनकी गुफा के पास स्थित भैरवनाथ का मंदिर भी श्रद्धालुओं द्वारा पूजित होगा, और बिना भैरवनाथ के दर्शन के उनकी यात्रा अधूरी मानी जाएगी।


गुफा और पवित्र पिंडी

माता ने त्रिकुटा पर्वत की गुफा को अपनी निवास स्थली बनाया। गुफा के भीतर तीन पिंडियाँ हैं, जो महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी के रूप में माता की शक्ति का प्रतीक हैं। यही तीनों पिंडियाँ मिलकर माता वैष्णो देवी के रूप में पूजी जाती हैं।

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माता के दर्शन की महिमा

माना जाता है कि जो भक्त सच्चे मन से माता वैष्णो देवी का स्मरण करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। माता की यात्रा कठिन और चुनौतीपूर्ण मानी जाती है, लेकिन भक्तों का उत्साह और श्रद्धा हर बाधा को पार कर लेती है।


मंदिर की स्थिति और यात्रा

  • स्थान: त्रिकुटा पर्वत, जम्मू और कश्मीर।
  • गुफा की लंबाई: लगभग 98 फीट।
  • भक्ति यात्रा: कटरा से 12-13 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद माता के दरबार तक पहुँचा जा सकता है।
  • पवित्र स्थान: भैरवनाथ मंदिर, अर्धकुंवारी, और चरणपादुका।

माता वैष्णो देवी की आरती

माता की आरती और भजन सुनना और गाना भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। आरती के समय वातावरण भक्तिमय हो जाता है, और माता के दरबार में उपस्थित होकर व्यक्ति आत्मिक शांति का अनुभव करता है।

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माता वैष्णो देवी की कृपा

माता वैष्णो देवी की कृपा असीम है। जो भक्त सच्चे हृदय से उनकी शरण में आते हैं, उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। भक्तों का विश्वास है कि माता हर संकट से उनकी रक्षा करती हैं।

यह कथा मातृशक्ति की अद्भुत महिमा और भक्त-देवी के पवित्र संबंध को दर्शाती है।

कटरा से कुछ दूरी पर स्थित भंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे वे निसंतान होने से दुखी रहते थे एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को बुलाया मां वैष्णो कन्या देश में उन्हीं के बीच आ बैठी पूजन के बाद सभी का न्याय तो चली गई पर मां वैष्णो देवी और शिद्दत से बोली।

सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दिल्ली और आसपास के गांव में भंडारे का संदेश दिया वहां से लौट कर आते समय गुरु गोरखनाथ और उनके शिष्य बाबा भैरव नाथ भैरव नाथ जी के साथ उनके दूसरे शिष्यों को भी भोजन का निमंत्रण दिया भोजन का निमंत्रण पाकर सभी गांव वासी अचंभित थे कि वह कौन सी कन्या है जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है इसके बाद श्रीधर के घर में अनेक गांव वासी आकर भोजन के लिए जमा हुए तब कन्या रूपी मां वैष्णो देवी ने एक चित्र से सभी को भोजन परोसा शुरू किया।

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भोजन करते हुए उसने कहा कि मैं तो खीर पुरी की जगह मांस खा लूंगा और मदिरा पान करूंगा तब कन्या रूपी मां ने उसे समझाया कि वह यह यह ब्राह्मण के यहां का भोजन है इसमें मांसाहार नहीं किया जाता किंतु भैरवनाथ ने जानबूझकर अपनी बात पर अड़ा रहा तब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा तब मैंने उसके कपट को जालिया मावा यूरोप में बदलकर त्रिकुटा पर्वत की ओर उड़ चली भैरवनाथ में उनके पीछे गया माना जाता है कि मां की रक्षा के लिए पवन पुत्र हनुमान भी थे।

हनुमान जी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर दोनों से पहाड़ पर चला कर एक जलधारा निकाली और उस जल में अपने किस दोहे आज jaldhara1 गंगा के नाम से जानी जाती है इस के पवित्र जल को पीने या इंग्लिश में स्नान करने से श्रद्धालुओं की सारी थकावट और तकलीफें दूर हो जाती है इस दौरान माता ने एक गुफा में प्रवेश कर 9 माह तक तपस्या की भेरुनाथ भी उनके पीछे वहां तक आ गया तब एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिसे जिसे एक कन्या समझ रहा है।

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जय आदि शक्ति जगदंबा है इसलिए उस महाशक्ति का पीछा छोड़ दे भैरवनाथ ने साधु की बात नहीं मानी तब माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर वहां से बाहर निकल गई यह गुफा आज भी अर्ध कुंवारी या आदि कुमारी या गर्भ जून के नाम से प्रसिद्ध है अर्थ कुमारी से पहले माता की चरण पादुका भी है वह स्थान है जहां माता ने भागते भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था गुफा से बाहर निकलकर कन्या ने देवी का रूप धारण किया माता ने भैरवनाथ को चेताया और वापस जाने को कहा फिर भी वह नहीं माना माता गुफा के भीतर चले गए तब माता की रक्षा के लिए हनुमान जी गुफा के बाहर थे।

और उन्होंने भैरवनाथ से युद्ध किया भैरवनाथ ने फिर भी हार नहीं मानी जब वीर लंगूर ने डाल होने लगा तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार किया भैरवनाथ का सिर काटकर 52 से 8 किलोमीटर दूर की घाटी में गिरा स्थान को भैरवनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता है माता वैष्णो देवी ने किया स्थान अथवा भवन के नाम से प्रसिद्ध है महाकाली मां सरस्वती और मां लक्ष्मी के रूप में विराजमान है मां वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है कहा जाता है।

कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने और उसने मां से समाधान की भीख मांगी माता वैष्णो देवी जानती थी कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंचा मोक्ष प्राप्त करने की थी उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्कर से मुक्ति प्रदान की बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे जब तक कोई वक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।

उसी मान्यता के अनुसार आज भी भक्त माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद करीब 3 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई करके भैरव नाथ के दर्शन करने जाते हैं सदा के लिए हो गई इसी दिन हो गए और उसी रास्ते आगे बढ़े उन्होंने सपने में देखा था बे गुफा के द्वार पर पहुंचे उन्होंने कई विधियों से पिंडी की पूजा को पूजा की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली।

देवी उनकी पूजा से प्रसन्न हुई वे उनके सामने प्रकट हुई और उन्हें आशीर्वाद दिया तब से श्रीधर और उनके वंशज देवी मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं आज भी 12 माह से बाहर आ मां वैष्णो देवी के दरबार में भक्तों का तांता लगा रहता है सच्चे मन से याद करने पर माता सब का बेड़ा पार करती है

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