इस लेख में आप जानेंगे की नैना देवी मंदिर का इतिहास, मंदिर कैसे। कब जा सकते हैं, मंदिर की सम्पूर्ण जानकारी:
- नैना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश।
नैना देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में है। यह शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ी पर स्थित एक भव्य मंदिर है। नैना देवी मंदिर का अर्थ है वाली देवी यहां पर माता के नए गिरे थे। यह देवी के 15 शक्तिपीठों में से एक है। वर्तमान में उत्तर भारत के नौ देवी यात्रा में नैना देवी का छठवां स्थान है। - वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा में मां चामुंडा देवी, मां ब्रजेश्वरी देवी, मां ज्वाला देवी, मां चिंतपूर्णी देवी, मां नैना देवी, मां मनसा देवी, मां कालिका देवी, मां शाकम्भरी देवी,सहारनपुर में शामिल है। नैना देवी हिंदू धर्म के पवित्र स्थलों में से एक है।
- नैना देवी जाने के लिए भक्त निजी वाहन से भी जा सकते हैं। नैना देवी जाने के लिए उड़न खटोला, पालकी आदि की भी व्यवस्था है। यह समुंदर तल से 1100 सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इस स्थान पर पीपल का पेड़ मुख्य आकर्षण का केंद्र है जो की अनेकों शताब्दी पुराना है।
- मंदिर के मुख्य द्वार के दाई और भगवान गणेश और हनुमान की मूर्ति है। मुख्य द्वार के पार करने के पश्चात आपको दो शेर की प्रतिमा दिखाई देगी। शेर माता का वाहन माना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में मुख्य तीन मूर्तियां हैं।
- दाएं तरफ माता काली की, मध्य में नैना देवी, और भाई और भगवान गणेश की प्रतिमा है। मंदिर के पास में पवित्र जल का तालाब है जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। मंदिर के समीप ही एक गुफा है जिसे नैना देवी के नाम से जाना जाता है। पहले मंदिर तक पहुंचने के लिए 1.25 किलोमीटर की पैदल यात्रा की जाती थी परंतु अब मंदिर प्रशासन द्वारा मंदिर तक पहुंचने के लिए उड़नखटोला का भी प्रबंध किया गया है।
- दुर्गा सप्तशती और देवी महात्यमय के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच में 100 वर्ष तक युद्ध चला था। इस युद्ध में असुरों ने सेना विजय की थी। असुरों का राजा महिषासुर स्वर्ग का राजा बन गया था औरत देवता सामान्य मनुष्य के भांति धरती पर रहने लगे थे।तब देवता ब्रह्मा जी को आगे करके उस स्थान पर गए जहां शिव जी भगवान विष्णु के पास गए।
- देवताओं ने अपनी सारी कथा भगवान को सुनाएं। यह सुनकर भगवान विष्णु और भगवान शिवजी को बहुत क्रोध आया उस क्रोध से भगवान विष्णु और शिव जी के शरीर से एक तेज उत्पन्न हुआ। भगवान शंकर के तेज से उस देवी का मुख, और विष्णु के तेज से उस देवी की वायें, ब्रह्मा जी के तेज से चरण, और यमराज के तेज से बाल, इंद्र के तेज से कटी प्रदेश, तथा अन्य देवता के तेज से उस देवी का शरीर बना।
- फिर हिमालय ने सिंह, भगवान विष्णु ने कमल, इंद्र ने घंटा, समुंदर ने कभी ना मैली होने वाली माला प्रदान की। तभी सभी देवताओं ने देवी की आराधना की ताकि देवी प्रसन्न हो और उनके कष्टों का निवारण करें। देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान दे दिया और कहा मैं तुम्हारी रक्षा अवश्य करूंगी। देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध किया।
- इसमें देवी की विजय हुई और तभी से देवी का नाम महिषासुर मर्दिनी पड़ गया था। गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा रचित दशम ग्रंथ “चण्डी दी वार” के अनुसार दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। यह वीरखेत प्रसिद्ध शाकंभरी देवी शक्ति पीठ से ही शिवालिक पर्वत श्रंखला में मौजूद है।
पौराणिक सती प्रथा के अनुसार:
नैना देवी मंदिर शक्ति पीठ मंदिर में से एक है। पूरे भारतवर्ष में कुल 15 शक्तिपीठ है। जी ने सभी की उत्पत्ति कथा एक ही है। यह सभी मंदिर भगवान शिव और माता शक्ति से जुड़े हुए हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इन सभी स्थलों पर देवी के अंग गिरे हुए हैं। भगवान शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था। जिसमें उन्होंने सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया था।परंतु भगवान शिव और सती माता को आमंत्रित नहीं किया था।- क्योंकि दक्ष भगवान शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। यह सब देखकर माता सती को बहुत क्रोध आया था वह दक्ष के यज्ञ में पहुंची और उन्होंने पूछा कि उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित क्यों नहीं किया दक्ष ने गुस्से में आकर भगवान शिव को बहुत भरा बला कहा। सती मां यह सब कुछ सहन नहीं कर पाई वह दक्ष के उची यज्ञ में कूद गए और सती हो गई।
- जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आए और माता सती के शरीर को हवन कुंड से निकालकर तांडव करने लगे।जिस कारण सारे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गई। पूरे ब्रह्मांड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 15 भागों में बांट दिया था। यह अगर जहां पर गिरे वहां पर मां के शक्तिपीठ बन गए।
- कोलकाता में केस गिरने के कारण महाकाली, नगरकोटा में स्तनों का कुछ भाग गिरने से माता बृजेश्वरी, ज्वालामुखी में जीभ गिरने से माता ज्वाला देवी, हरियाणा के पंचकुला के पास मस्तिष्क का भाग गिरने के कारण माता मनसा देवी, कुरुक्षेत्र में टखना गिरने के कारण माता भद्रकाली।
- सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीशा गिरने के कारण माता शाकुंभरी देवी, प्राची के पास बृहारंधृ गिरने से माता हिंगलाज भवानी, असम में कोख गिरने से माता कामाख्या देवी, चरणों के कुछ अंश गिरने के कारण माता चिंतपूर्णी आदि शक्ति पीठ बन गए। मान्यता है कि नैना देवी रे माता सती के नेत्र गिरे थे।
नैना देवी मंदिर के प्रमुख त्योहार:
नैना देवी मंदिर में नवरात्रि का त्योहार बड़ी धूमधाम से हर साल मनाया जाता है। वर्ष में आने वाली दोनों नवरात्रि चैत्र मास और अश्विन मास के नवरात्रों में यहां पर विशाल मेला आयोजित किया जाता है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आकर माता नैना देवी के दर्शन पाते हैं। माता को भोग के रूप में 56 प्रकार की वस्तुओं का भोग लगाया जाता है। श्रावण अष्टमी को यहां पर भव्य वह आकर्षक मेले आयोजित किया जाता है। यहां पर नवरात्रों में श्रद्धालुओं की संख्या दुगनी हो जाती है। बाकी हमें तो हार भी यहां पर धूमधाम से मनाया जाते हैं।
- नैना देवी जाने के लिए मार्ग कौन कौन सा है:
1) वायु मार्ग
हवाई जहाज से जाने वाले श्रद्धालु चंडीगढ़ विमानक्षेत्र तक वायु मार्ग से जा सकते हैं। इसके बाद बस या कार की सुविधा भी ले सकते हैं। दूसरा नजदीकी हवाई अड्डा अमृतसर विमानक्षेत्र में है। - 2) रेल मार्ग
नैना देवी जाने के लिए श्रद्धालु चंडीगढ़ और पालमपुर तक रेल सुविधा दे सकते हैं। इसके पश्चात बस या कार अन्य वाहनों से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। चंडीगढ़ देश के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। - 3) सड़क मार्ग
नैना देवी दिल्ली से 350 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दिल्ली से करनाल, चंडीगढ़, रोपड़, होते हुए श्रद्धालु नैना देवी तक पहुंचते हैं। सड़क मार्ग सभी सुविधाओं से प्रमुख है। रास्ते में कई सारे होटल है। यहां पर श्रद्धालु आराम से विश्राम कर सकते हैं ताकि उन्हें माता के दरबार में जाने के लिए कोई दिक्कत का सामना ना हो। कहते हैं जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से माता के दरबार में अपनी मन्नत लेकर आता है माता उनकी हर मनोकामना को पूर्ण करती है जय माता दी।
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