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Home धर्म ग्रंथ
माता सरस्वती - Mata Saraswati

माता सरस्वती – Mata Saraswati

by Vaishno Mata
May 17, 2025
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Table of Contents

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  • माता सरस्वती
    • माता सरस्वती कौन थीं?
    • माता सरस्वती की उत्पत्ति
    • माता सरस्वती का स्वरूप
      • माता सरस्वती की जीवनी और कथाएँ
      • सरस्वती और अन्य देवी-देवता:
      • माता सरस्वती का महत्त्व
    • माता सरस्वती के 108 नाम
      • उपयोग और महत्व
  • सरस्वती मां जुबान पर कब आती हैं?
      • 1. सच्ची श्रद्धा और भक्ति
      • 2. नियमित मंत्र जाप और स्तुति
      • 3. शुद्धता और पवित्रता
      • 4. विद्या और कला का सम्मान
      • 5. निष्काम भाव से पूजा
      • 6. विशेष पर्वों पर पूजा
      • 7. ध्यान और साधना
      • 8. सात्विक जीवनशैली
    • निष्कर्ष
      • माता सरस्वती का मूल मंत्र, जिसे बीज मंत्र भी कहा जाता है, निम्नलिखित है:
      • मंत्र का अर्थ:
      • महत्व:
      • जाप की विधि:

माता सरस्वती

माता सरस्वती को हिंदू धर्म में ज्ञान, बुद्धि, विद्या, कला और संगीत की देवी के रूप में पूजा जाता है। वे त्रिदेवियों (सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती) में से एक हैं और इन्हें भगवान ब्रह्मा की पत्नी भी माना जाता है। उनकी जीवनी को संक्षेप में भारतीय वेदों, पुराणों और अन्य भारतीय ग्रंथों के आधार पर इस अर्थ में लिखा जा सकता है कि उनके जीवन का निबंध मुख्यतः पौराणिक और आध्यात्मिक संदर्भों पर आधारित है।

माता सरस्वती कौन थीं?

माता सरस्वती को वेदों में वाक् की देवी माना गया है। वह योग, विद्या, वाणी, साहित्य, नृत्य और कला आदि क्षेत्रों की देवी हैं। वह भारतीय संस्कृति में सृजनात्मक शक्ति और बौद्धिक ऊँचाइयों की देवी हैं। वह माता तथा देवी रूप में ब्रह्मा की रचनात्मक शक्ति के रूप में उत्पन्न हुईं और सृष्टि का निर्माण करने में सहायता की।

माता सरस्वती की उत्पत्ति

पुराणों के अनुसार चन्द्रमा और सृष्टि पर काम शुरू करने के बाद मनुष्य ब्रह्मा को कुछ व्यवस्था एवं ज्ञान की भी आवश्यकता हो रही थी। तपस्या करते-करते ब्रह्मा के मुख से माता सरस्वती प्रकट हो गईं। वे सप्त नदियों के समान सुंदर, सफेद वस्त्रों में सुशोभित, वीणा धारण किए ज्ञान का प्रतीक बनकर प्रकट हुईं। कुछ ग्रंथों में इन्हें ब्रह्मा की मानस पुत्री भी कहा गया है।

माता सरस्वती - Mata Saraswati
माता सरस्वती – Mata Saraswati

माता सरस्वती का स्वरूप

  • माता सरस्वती की श्रद्धा सुंदर, शांत एवं मधुर स्वरूप की मानी जाती है;
  • वस्त्र और रंग: माता सरस्वती श्वेत वस्त्र पहनती हैं, जो ज्ञान और पवित्रता का प्रतीक है।
  • हाथ और प्रतीक: माता सरस्वती चार हाथों में वीणा, पुस्तक, कमल पुष्प और माला धारण किए रखीं हैं।
  • वीणा: संगीत और कला का सम्मान करती हैं।
  • पुस्तक: विद्या और ज्ञान का परिचय देती हैं।
  • माला: सेवा और आध्यात्मिकता का गुण मानी जाती हैं।
  • कमल: प्रशंसा और शुद्धता का प्रतीक मानी जाती हैं।
  • वाहन: हंस जो बुद्धि और ज्ञान दर्शाता है, उनका वाहन है। कुछ किस्सों में उन्हें मयूर भी माना जाता है।
  • नदी के रूप में: उन्हें वैदिक युग में एक पवित्र नदी के रूप में भी पूजा गया है। वो ऋग्वेद में सरस्वती नदी की महिमा भी मानी जाती हैं।
माता सरस्वती - Mata Saraswati
माता सरस्वती – Mata Saraswati

माता सरस्वती की जीवनी और कथाएँ

माता सरस्वती की अनगिनत व्याख्याएँ विभिन्न संदर्भों में देखी गई हैं। माता सरस्वती की कहानियाँ कई वर्षों से अद्भुत रूप में रची गई हैं।

सृष्टि में योगदान: सरस्वती से वाणी और ज्ञान का आशीर्वाद माँगा जाता है। सृष्टि के लिए माता सरस्वती ने सहयोग दिया।

देवताओं की सहायता: कई कहानियों में देखा गया है कि सरस्वती ने देवताओं को चिरकाल से चल रहे श्रम में मदद की। मान लीजिए जब ऋषि विश्वामित्र ने त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का प्रयास किया तो उस समय सरस्वती ने अपनी शक्ति से इस कार्य को प्रभावित करने का प्रयास किया।

वाणी की देवी: ‘जिनकी वाणी विद्या एवं वाणी के लिए मान्यता प्राप्त होती है।’ एक कहावत के अनुसार, जब मनुष्यों में सामान्य संचार की शक्ति की कमी महसूस की गई, तब सरस्वती ने उन्हें भाषा और लिपि लिखने का माध्यम प्रदान किया।

वृत्त: देवी सरस्वती जी की पूजा विशेष तौर पर विद्यार्थी, कलाकार, और विद्वान् द्वारा की जाती है, ताकि उन्हें ज्ञान और बुद्धि दी जा सके।

माता सरस्वती - Mata Saraswati

सरस्वती और अन्य देवी-देवता:

ब्रह्मा: सरस्वती ब्रह्मा की पत्नी हैं और उनकी रचनात्मक शक्ति का हिस्सा हैं।

लक्ष्मी और पार्वती: श्री सरस्वती को लक्ष्मी धर्म, शुद्धता और पार्वती की शक्तिशाली त्रिदेवियों के रूप में स्मरण किया गया है।

विष्णु और शिव: कई लोक-कथाओं में ज्ञान और शक्ति के शांति और संतुलन के रूप में सरस्वती को विष्णु और शिव के साथ जोड़ा जाता है।

माता सरस्वती का महत्त्व

शिक्षा और विद्या: सरस्वती विद्यार्थियों और शिक्षकों की संरक्षक हैं। विद्यालयों, शिक्षण संस्थाओं और विद्यायों में भी उनकी पूजा की जाती है।

अवधि और सृजन: संगीतकार, नर्तक और कलाकार अपने कार्यों में सरस्वती की छवि अंकित करते हैं।

आध्यात्मिकता: सृजनात्मकता और ध्यान का तात्कालिक ज्ञान सरस्वती का प्रतीक है, जो आत्म-जागरूकता और विवेकशीलता को जागरुक करती है।

सपद: सरस्वती नदी का उल्लेख वैदिक साहित्य में मिलता है। नदियों के बारे में कुछ विद्वानों का मानना है कि सरस्वती अब सुख चुकी है, परंतु इसकी कहानियों की पुष्टि आज भी होती है।

भगवती सरस्वती केवल ज्ञानी और बुद्धि देवी ही नहीं, बल्कि सृजनात्मकता तथा आध्यात्मिकता को भी दर्शाती हैं। उनकी पूजा तथा आराधना भारत में शिक्षा कला का खासा सम्मान प्रतीत करता है। उनके जीवन से जुड़े किस्से और पर्व हमें यह सिखाये हैं कि ज्ञान और विवेक जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए सृजना होती है।

माता सरस्वती के 108 नाम, जिन्हें सरस्वती अष्टोत्तर शतनामावली के रूप में जाना जाता है, हिंदू धर्म में उनकी पूजा और स्तुति के लिए उपयोग किए जाते हैं। ये नाम उनके विभिन्न गुणों, शक्तियों और स्वरूपों को दर्शाते हैं। नीचे माता सरस्वती के 108 नाम संस्कृत में और उनके अर्थ के साथ संक्षेप में दिए गए हैं। ये नाम विभिन्न ग्रंथों और परंपराओं से लिए गए हैं।

माता सरस्वती - Mata Saraswati

माता सरस्वती के 108 नाम

  1. ॐ सरस्वत्यै नमः – ज्ञान और वाणी की देवी को नमस्कार।
  2. ॐ महाभद्रायै नमः – अत्यंत कल्याणकारी।
  3. ॐ महामायायै नमः – महान माया स्वरूपा।
  4. ॐ वरप्रदायै नमः – वर देने वाली।
  5. ॐ श्रीप्रदायै नमः – समृद्धि प्रदान करने वाली।
  6. ॐ पद्मनिलयायै नमः – कमल पर निवास करने वाली।
  7. ॐ पद्माक्ष्यै नमः – कमल जैसी आँखों वाली।
  8. ॐ पद्मवक्त्रायै नमः – कमल जैसे मुख वाली।
  9. ॐ शिवानुजायै नमः – शिव की बहन।
  10. ॐ पुस्तकहस्तायै नमः – पुस्तक धारण करने वाली।
  11. ॐ ज्ञानमुद्रायै नमः – ज्ञान की मुद्रा वाली।
  12. ॐ रमायै नमः – रमण करने वाली।
  13. ॐ परायै नमः – परम स्वरूपा।
  14. ॐ कामरूपायै नमः – इच्छित रूप धारण करने वाली।
  15. ॐ महाविद्यायै नमः – महान विद्या की स्वामिनी।
  16. ॐ विद्युन्नादायै नमः – बिजली की तरह गर्जन करने वाली।
  17. ॐ विश्वरूपायै नमः – विश्व के रूप वाली।
  18. ॐ विद्याधर्यै नमः – विद्या की धारिणी।
  19. ॐ विश्वघ्न्यै नमः – विश्व के संहार करने वाली।
  20. ॐ सर्वंन्यै नमः – सभी की रक्षक।
  21. ॐ विद्युज्जिह्वायै नमः – बिजली जैसी जीभ वाली।
  22. ॐ सर्वप्रदायै नमः – सभी को देने वाली।
  23. ॐ चन्द्रिकायै नमः – चंद्रमा की तरह शीतल।
  24. ॐ चन्द्रलेखायै नमः – चंद्र की रेखा वाली।
  25. ॐ सावित्र्यै नमः – सूर्य की शक्ति स्वरूपा।
  26. ॐ सुरसायै नमः – देवताओं की शक्ति।
  27. ॐ देव्यै नमः – देवी स्वरूपा।
  28. ॐ दिव्यालङ्कारभूषितायै नमः – दिव्य आभूषणों से सुशोभित।
  29. ॐ वाग्देव्यै नमः – वाणी की देवी।
  30. ॐ वसुदायै नमः – धन देने वाली।
  31. ॐ तीव्रायै नमः – तीव्र स्वरूप वाली।
  32. ॐ महाभद्रायै नमः – अत्यंत शुभ स्वरूपा।
  33. ॐ महाबलायै नमः – महान बल वाली।
  34. ॐ भोगदायै नमः – भोग प्रदान करने वाली।
  35. ॐ भारत्यै नमः – भारत की अधिष्ठात्री।
  36. ॐ भामायै नमः – तेजस्वी स्वरूपा।
  37. ॐ गोविन्दायै नमः – गोविंद की शक्ति।
  38. ॐ गोमत्यै नमः – गौमाता स्वरूपा।
  39. ॐ शिवायै नमः – शिव की शक्ति।
  40. ॐ जटिलायै नमः – जटाओं वाली।
  41. ॐ विन्ध्यवासिन्यै नमः – विन्ध्य पर्वत पर निवास करने वाली।
  42. ॐ विनिद्रायै नमः – जो कभी निद्रा में नहीं रहती।
  43. ॐ चण्डिकायै नमः – चण्डी स्वरूपा।
  44. ॐ वैष्णव्यै नमः – विष्णु की शक्ति।
  45. ॐ ब्राह्म्यै नमः – ब्रह्मा की शक्ति।
  46. ॐ सर्वदायै नमः – सभी को प्रदान करने वाली।
  47. ॐ कामधेनवे नमः – कामधेनु गाय स्वरूपा।
  48. ॐ धेनुकायै नमः – गाय स्वरूपा।
  49. ॐ वह्निवासिन्यै नमः – अग्नि में निवास करने वाली।
  50. ॐ महालक्ष्म्यै नमः – महालक्ष्मी स्वरूपा।
  51. ॐ कुलदेव्यै नमः – कुल की देवी।
  52. ॐ सर्वदेवमयायै नमः – सभी देवताओं का स्वरूप।
  53. ॐ अमृतायै नमः – अमृत स्वरूपा।
  54. ॐ शुभदायै नमः – शुभ प्रदान करने वाली।
  55. ॐ सुरभ्यै नमः – सुगंधित स्वरूपा।
  56. ॐ परमेष्ठिन्यै नमः – परम स्थान वाली।
  57. ॐ धात्री नमः – पृथ्वी स्वरूपा।
  58. ॐ विश्वमातायै नमः – विश्व की माता।
  59. ॐ विश्वरक्षिण्यै नमः – विश्व की रक्षक।
  60. ॐ विश्वमोहिन्यै नमः – विश्व को मोहित करने वाली।
  61. ॐ विश्वतोमुख्यै नमः – सभी दिशाओं में मुख वाली।
  62. ॐ विश्वेश्वर्यै नमः – विश्व की स्वामिनी।
  63. ॐ सर्वेश्वर्यै नमः – सभी की स्वामिनी।
  64. ॐ सर्वमङ्गलायै नमः – सभी मंगल करने वाली।
  65. ॐ सिद्धिदायै नमः – सिद्धि प्रदान करने वाली।
  66. ॐ बुद्धिदायै नमः – बुद्धि प्रदान करने वाली।
  67. ॐ योगमायायै नमः – योग की शक्ति।
  68. ॐ योगनिद्रायै नमः – योग निद्रा स्वरूपा।
  69. ॐ सर्वसिद्धिप्रदायिन्यै नमः – सभी सिद्धियाँ देने वाली।
  70. ॐ सर्वज्ञायै नमः – सर्वज्ञ स्वरूपा।
  71. ॐ सर्वलोकप्रियायै नमः – सभी लोकों में प्रिय।
  72. ॐ सर्वलोकवशङ्कर्यै नमः – सभी लोकों को वश में करने वाली।
  73. ॐ सर्वलोकनमस्कृतायै नमः – सभी लोकों द्वारा नमस्कृत।
  74. ॐ सर्वलोकदायै नमः – सभी लोकों को देने वाली।
  75. ॐ सर्वलोकमातायै नमः – सभी लोकों की माता।
  76. ॐ सर्वलोकेश्यै नमः – सभी लोकों की स्वामिनी।
  77. ॐ सर्वलोकप्रकाशिन्यै नमः – सभी लोकों को प्रकाशित करने वाली।
  78. ॐ सर्वलोकसुन्दर्यै नमः – सभी लोकों में सुंदर।
  79. ॐ सर्वलोकमहेश्वर्यै नमः – सभी लोकों की महेश्वरी।
  80. ॐ सर्वलोकप्रतिष्ठितायै नमः – सभी लोकों में प्रतिष्ठित।
  81. ॐ सर्वलोकसुखदायिन्यै नमः – सभी लोकों को सुख देने वाली।
  82. ॐ सर्वलोकमोक्षदायिन्यै नमः – सभी लोकों को मोक्ष देने वाली।
  83. ॐ सर्वलोकदुखनाशिन्यै नमः – सभी लोकों के दुख नाश करने वाली।
  84. ॐ सर्वलोकसर्वदायै नमः – सभी को सब कुछ देने वाली।
  85. ॐ सर्वलोकसर्वमातायै नमः – सभी की माता।
  86. ॐ सर्वलोकसर्वेश्वर्यै नमः – सभी की स्वामिनी।
  87. ॐ सर्वलोकसर्वसिद्धिदायै नमः – सभी सिद्धियाँ देने वाली।
  88. ॐ सर्वलोकसर्वबुद्धिदायै नमः – सभी को बुद्धि देने वाली।
  89. ॐ सर्वलोकसर्वमङ्गलायै नमः – सभी के लिए मंगलकारी।
  90. ॐ सर्वलोकसर्वरक्षिण्यै नमः – सभी की रक्षक।
  91. ॐ सर्वलोकसर्वप्रदायै नमः – सभी को सब कुछ देने वाली।
  92. ॐ सर्वलोकसर्वमोक्षदायै नमः – सभी को मोक्ष देने वाली।
  93. ॐ सर्वलोकसर्वसुखदायै नमः – सभी को सुख देने वाली।
  94. ॐ सर्वलोकसर्वदुखनाशिन्यै नमः – सभी दुखों का नाश करने वाली।
  95. ॐ सर्वलोकसर्वसर्वस्वरूपायै नमः – सभी का स्वरूप।
  96. ॐ सर्वलोकसर्वमहेश्वर्यै नमः – सभी की महेश्वरी।
  97. ॐ सर्वलोकसर्वसर्वदायै नमः – सभी को सब कुछ देने वाली।
  98. ॐ सर्वलोकसर्वसर्वमातायै नमः – सभी की माता।
  99. ॐ सर्वलोकसर्वसर्वेश्वर्यै नमः – सभी की स्वामिनी।
  100. ॐ सर्वलोकसर्वसर्वसिद्धिदायै नमः – सभी सिद्धियाँ देने वाली।
  101. ॐ सर्वलोकसर्वसर्वबुद्धिदायै नमः – सभी को बुद्धि देने वाली।
  102. ॐ सर्वलोकसर्वसर्वमङ्गलायै नमः – सभी के लिए मंगलकारी।
  103. ॐ सर्वलोकसर्वसर्वरक्षिण्यै नमः – सभी की रक्षक।
  104. ॐ सर्वलोकसर्वसर्वप्रदायै नमः – सभी को सब कुछ देने वाली।
  105. ॐ सर्वलोकसर्वसर्वमोक्षदायै नमः – सभी को मोक्ष देने वाली।
  106. ॐ सर्वलोकसर्वसर्वसुखदायै नमः – सभी को सुख देने वाली।
  107. ॐ सर्वलोकसर्वसर्वदुखनाशिन्यै नमः – सभी दुखों का नाश करने वाली।
  108. ॐ श्री सरस्वत्यै नमः – श्री सरस्वती को नमस्कार।

उपयोग और महत्व

  • पूजा में उपयोग: इन 108 नामों का जाप सरस्वती पूजा, विशेष रूप से वसंत पंचमी और नवरात्रि के दौरान किया जाता है। यह जाप ज्ञान, बुद्धि और सृजनात्मकता के लिए किया जाता है।
  • मंत्र जाप: प्रत्येक नाम के साथ “ॐ” और “नमः” जोड़कर मंत्र के रूप में जप किया जाता है।
  • ध्यान और साधना: ये नाम ध्यान और साधना में उपयोग किए जाते हैं ताकि भक्त माता सरस्वती के विभिन्न स्वरूपों का चिंतन कर सकें।

।। शिवाष्टक शिव स्त्रोत।। Shri Shivashtak

सरस्वती मां जुबान पर कब आती हैं?

माता सरस्वती की कृपा से आपकी वाणी में शक्ति, मधुरता, और ज्ञान तब आता है जब आप निम्नलिखित बातों का ध्यान रखते हैं:

1. सच्ची श्रद्धा और भक्ति

  • सरस्वती मां की पूजा में सच्चा विश्वास और भक्ति बहुत जरूरी है। जब आप पूरे दिल से उनकी आराधना करते हैं, तो वे आपकी वाणी को प्रभावशाली और मधुर बनाती हैं।
  • बिना श्रद्धा के की गई पूजा से कोई फायदा नहीं मिलता।

2. नियमित मंत्र जाप और स्तुति

  • मां सरस्वती के मंत्रों का नियमित जाप करने से उनकी कृपा मिलती है। कुछ खास मंत्र हैं:
    • “ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः”
    • “या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता…” (सरस्वती वंदना)
  • इनका जाप करने से आपकी वाणी में स्पष्टता और आत्मविश्वास बढ़ता है।

3. शुद्धता और पवित्रता

  • पूजा के समय शरीर और मन दोनों की शुद्धता जरूरी है। स्नान करें, साफ कपड़े पहनें, और शांत मन से पूजा करें।
  • मन में कोई नकारात्मक विचार न रखें, तभी मां प्रसन्न होती हैं।

4. विद्या और कला का सम्मान

  • सरस्वती मां ज्ञान, कला, और संगीत की देवी हैं। इसलिए, शिक्षा, साहित्य, और कलाओं का सम्मान करने से उनकी कृपा मिलती है।
  • जो लोग विद्या को महत्व देते हैं, उन पर मां की विशेष कृपा होती है।

5. निष्काम भाव से पूजा

  • मां की पूजा बिना किसी स्वार्थ या लालच के करें। जब आप निःस्वार्थ भाव से उनकी आराधना करते हैं, तो वे आपकी वाणी को शक्तिशाली बनाती हैं।

6. विशेष पर्वों पर पूजा

  • वसंत पंचमी और नवरात्रि के दिन मां सरस्वती की पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है। इन दिनों में उनकी कृपा जल्दी मिलती है।

7. ध्यान और साधना

  • नियमित ध्यान और साधना से आपका मन शांत होता है, और मां सरस्वती की कृपा से आपकी वाणी में ज्ञान और स्पष्टता आती है।

8. सात्विक जीवनशैली

  • सात्विक भोजन करें, अच्छे विचार रखें, और सच्चाई के रास्ते पर चलें। इससे आपकी वाणी में मिठास और प्रभाव बढ़ता है।

निष्कर्ष

माता सरस्वती आपकी जुबान पर तभी आती हैं जब आप सच्ची श्रद्धा और भक्ति के साथ उनकी पूजा करते हैं, उनके मंत्रों का जाप करते हैं, शुद्धता रखते हैं, और विद्या का सम्मान करते हैं। निष्काम भाव से की गई पूजा और विशेष दिनों जैसे वसंत पंचमी पर उनकी आराधना से यह कृपा और तेजी से मिलती है। जब मां की कृपा होती है, तो आपकी वाणी ज्ञानपूर्ण, मधुर, और प्रभावशाली बन जाती है।

माता सरस्वती का मूल मंत्र, जिसे बीज मंत्र भी कहा जाता है, निम्नलिखित है:

ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः
(उच्चारण: Om Aim Saraswatyai Namah)

मंत्र का अर्थ:

  • ॐ: प्रणव मंत्र, जो सभी मंत्रों का आधार है और ईश्वरीय शक्ति का प्रतीक है।
  • ऐं: सरस्वती का बीज मंत्र, जो ज्ञान, वाणी और बुद्धि का प्रतीक है।
  • सरस्वत्यै: माता सरस्वती को संबोधित।
  • नमः: नमस्कार या समर्पण का भाव।

महत्व:

  • इस मंत्र का जाप करने से माता सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है, जिससे वाणी में मधुरता, बुद्धि में तेजी और ज्ञान में वृद्धि होती है।
  • यह विद्यार्थियों, शिक्षकों, कलाकारों और साधकों के लिए विशेष रूप से फलदायी है।
  • वसंत पंचमी और नवरात्रि के दौरान इस मंत्र का जाप विशेष शुभ माना जाता है।

जाप की विधि:

  • शुद्धता: स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • स्थान: शांत और पवित्र स्थान पर बैठें, माता सरस्वती की मूर्ति या चित्र के सामने।
  • माला: रुद्राक्ष या कमल की माला का उपयोग करें।
  • संख्या: कम से कम 108 बार जाप करें।
  • समय: प्रातःकाल या सूर्योदय के समय जाप करना उत्तम है।

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