।। मणिमहेश यात्रा की कहानी।।
जय महाकाल रहस्य की बात यह है, कि जिस समय मणी चमकती है, उससे काफी समय के बाद सूर्योदय होता है। यहां पर श्रद्धालु चमकती मणी को देखने के लिए रात भर जागते हैं। यही कारण है कि इस पवित्र पर्वत को मणिमहेश के नाम से जाना जाता है। मणिमहेश यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को धनछौ नामक स्थान से होते हुए पवित्र मणिमहेश डल झील तक का सफर करना पड़ता है।
- मणिमहेश कैलाश पर्वत का रहस्य-
मणिमहेश यात्रा: मणिमहेश कैलाश पर्वत का रहस्य कोई नहीं जान पाया है। जिसने भी ऊपर जाकर उसके रहस्य को जाने की कोशिश की है तो वह वापस नहीं लौटा। चौथे पहर में मणिमहेश कैलाश पर्वत पर चमकने वाली मनी को लोग दूर दूर से देखने आते हैं।
- हिमाचल प्रदेश चंबा जिले में है मणिमहेश-
भोलेनाथ की लीला बड़ी ही निराली है। वह साक्षात भक्तों को दर्शन देते हैं। धरती पर उनके कई धाम है। इन्हीं में से एक है मणिमहेश। यह चंबा जिले में स्थित है। इस जगह को चंबा कैलाश भी कहा जाता है।
।। मणिमहेश नाम की सचाई।।
इस जगह का नाम मणिमहेश कैसे पड़ा, इसका एक विशेष महत्व है। विद्वानों के अनुसार पर्वत के शिखर पर शिव शेष नाग मणि के रूप में विराजमान है। इसी रूप शिव अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। इसके अलावा इस शब्द का मतलब महेश के मुकुट में नगीना भी है।
- पार्वती माता के निवास स्थान को मणिमहेश क्यों कहते है-
हमारे शास्त्रों में कहा जाता है कि शिव शंकर ने पार्वती जी के साथ रहने के लिए मणिमहेश पर्वत की रचना की थी। इस स्थान पर शिव आज भी शिवलिंग के रूप में विराजमान है। जबकि माता पार्वती को यहा देवी गिरजा के रूप में जाना जाता है। शिव जी आज भी यहां पार्वती के साथ विराजमान है, इसलिए उसको मणिमहेश कहा जाता है। इस स्थान पर दूर-दूर से लोग या मणि के दर्शन के लिए आते हैं।
- सूरज की किरणों में होते हैं मणि के दर्शन-
मणिमहेश पर्वत पर शिव श्याम वह रात्रि के मध्यकाल में दर्शन देते हैं। सूर्यास्त के समय जब सूर्य की किरणें पर्वत के शिखर पर पड़ती हैं तब पूरा दृश्य स्वर्णिम हो जाता है। मौसम साफ रहे तो भक्त पर्वत की चोटी पर शिव को देख सकते हैं, लेकिन अगर मौसम खराब हो तो मनी के दर्शन नहीं होते।
- सबको नहीं होते मनी के दर्शन-
कहा जाता है कि मणिमहेश पर्वत का शिखर अदृश्य है। यह पर्वत हमेशा बादलों में बर्फ से ढका रहता है। यह चोटी महज उसी को दिख सकती है जो पूर्ण रूप से पाप मुक्त हो वह सच्ची श्रद्धा से भोले भंडारी को याद कर रहा है। जिस व्यक्ति के अंदर पाप हो भगवान शंकर जी उन्हें दर्शन नहीं देते। यहां की मान्यता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से अपनी आस्था लेकर आता है, भगवान उनकी हर मनोकामना को पूरा करते हैं।
- मणिमहेश की ऊंचाई कितनी है-
मणिमहेश पर्वत की कुल ऊंचाई कितनी है इस बात को आज तक कोई नहीं जान पाया। अब तो कोई भी इसकी पूरी जानकारी नहीं दे पाया है। इस पर्वत की ऊंचाई इतनी है कि इस पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ पाया है। और जिसने इस पर्वत पर जाने की कोशिश की है वह कभी वापस नहीं आया, कहते हैं जो व्यक्ति इस पर्वत की चोटी पर चढ़ता है उन्हें कोई अदृश्य शक्ति रोक देती है। सन 1968 में इंडो-जापनीस की एक टीम ने जिसका नेतृत्व नंदिनी पटेल कर रहे थी, इस पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की थी लेकिन वह असफल रही।
।। मणिमहेश की प्रचलित पौराणिक कथा।।
स्थानीय लोगों के अनुसार कई वर्ष पहले एक गडरिया अपने कुछ भेड़ों के साथ मणिमहेश पर्वत पर चढ़ रहा था हैं। वह शिखर पर पहुंचने से पहले भेंड़ों समेत पत्थर का बन गया। कहां जाता है कि आज भी मणिमहेश पर्वत पर वह सभी छोटे छोटे पत्थरों के रूप में मौजूद है। मणिमहेश से जुड़ी एक और कथा प्रचलित है। लोगों के मुताबिक एक बार सांप ने भी पर्वत के शिखर पर पहुंचने की कोशिश की थी वह भी पत्थर बन गया था।
- चमकती मणि के दर्शन करने रात भर जागते हैं श्रद्धालु-
मणिमहेश पर्वत पर रात्रि के चौथे पहर जाने ब्रह्म मुहूर्त में एक मनी चमकती है। इसकी चमक इतनी अधिक होती है, कि उसकी रोशनी दूर-दूर तक दिखाई पड़ती है, रहस्य की बात यह है कि जिस समय बनी चमकती है। उसके काफी समय के बाद सूर्योदय होता है। दूर-दूर से आए श्रद्धालु चमकती मनी को देखने के लिए रात भर जागते हैं। यही कारण है कि इस पवित्र पर्वत को मणिमहेश के नाम से जाना जाता है।
- धन्छौ की कहानी-
मणिमहेश यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को धनछौ नामक स्थान से होते हुए पवित्र मणिमहेश डल झील तक का सफर करना पड़ता है। धन्छौ के पीछे भगवान शिव की एक कहानी बहुत प्रचलित है। एक बार भस्मासुर नामक राक्षस ने भगवान भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए कड़ी तपस्या की थी। भोलेनाथ ने भस्मासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहा। - भगवान शिव से भस्मासुर ने वरदान मांगा कि वह जिस के सर के ऊपर हाथ रखे हुए हैं भसम हो जाए। भोलेनाथ ने भस्मासुर को वरदान दे दिया। लेकिन इस दौरान भस्मासुर के मन में खोट आ गया और वह भोलेनाथ को ही भस्म करने के लिए आगे बढ़ गया। इस दौरान भगवान वहां से धन्छौ मैं आकर आश्रय लिया, यहां पर आकर वह भोलेनाथ को खोज नहीं पाया। इसी दौरान भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर भस्मासुर को भस्म कर दिया था।
- मणिमहेश में शिव घराट का रहस्य
मणिमहेश यात्रा के दौरान शिव घराट के रहस्य से भी श्रद्धालु काफी हैरान होते हैं।घन्छौ वह गौरीकुंड के मध्य एक ऐसा स्थान है जहां पहुंचने पर घराट के घूमने की आवाज स्पष्ट सुनाई देती है। इस दौरान ऐसा लगता है कि मानो उस स्थान पर पहाड़ों में कोई घराट घुमा रहा हो। इस स्थान को शिव घराट के नाम से जाना जाता है। श्रद्धालु यात्रा के दौरान शिव घराट की आवाज सुनने के लिए उस स्थान पर पहुंचते हैं। - मणिमहेश कैसे जाएं
मणिमहेश पहुंचने के लिए वैसे तो कई रास्ते हैं। लेकिन सड़क से होते हुए सफर करने पर श्रद्धालुओं को सबसे पहले जिला मुख्यालय चंबा पहुंचना पड़ता है। पठानकोट से चंबा की दूरी 120 किलोमीटर है। यहां से आगे भरमौर तक 64 किलोमीटर का सफर करना पड़ता है। पठानकोट से मणिमहेश की दूरी 200 किलोमीटर से अधिक है। - हड़सर से मणिमहेश के लिए पैदल यात्रा शुरू होती है। हड़सर से मणिमहेश के डल झील से दूरी 13 किलोमीटर है। पठानकोट मणिमहेश कैलाश यात्रा के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन है। जबकि कांगड़ा हवाई अड्डा सबसे पहले नजदीकी एयरपोर्ट है। मणिमहेश पहुंचने के लिए अधिकतर तौर पर यात्रा शुरू होने से कुछ दिन पूर्व से लेकर कुछ दिन बाद तक श्रद्धालु यात्रा करते हैं। यह यात्रा करने के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है।
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