ज्वाला देवी के मंदिर का इतिहास 2023
- ज्वाला देवी हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलोमीटर की दूरी पर ज्वाला देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। जवाला मंदिर को जोता वाली मां का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाऔं की पूजा होती है।51 शक्तिपीठ में से एक यह मंदिर है। नवरात्रों में ज्वाला देवी के मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी रहती है। बादशाह अकबर ने इस ज्वाला को बुझाने की बहुत कोशिश की थी लेकिन वह नाकाम रहा था। विज्ञानिक भी इस ज्वाला के लगातार जलने का रहस्य आज तक नहीं जान पाए हैं।
आज हम आपको ज्वाला देवी के मंदिर के बारे में बताते हैं।
- #ज्वालामुखी देवी के मंदिर को जोता वाली माता भी कहा जाता है। ज्वाला देवी के मंदिर से नौ अलग-अलग जगह से ज्वालाएं निकलती है।
- #ज्वाला देवी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों हो जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी।
- #ब्रिटिश कॉल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अंदर से निकलती इस ज्वाला का इस्तेमाल कर सके लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाएं थे।
- #अकबर ने भी ज्योति को बुझाने की बहुत कोशिश की थी लेकिन वह भी ऐसा ना कर सका।
- #यही नहीं पिछले सात दशको से विज्ञानिक इस क्षेत्र में तंबू गाड़ कर बैठे हैं, वह भी इस ज्वाला की जड़ तक नहीं पहुंच पाए।
- #यह सब बातें यह सिद्ध करती है कि जहां ज्वाला प्राकृतिक रुप से नहीं चमत्कारी रुप से ही निकालते हैं, नहीं तो आज यहां मंदिर की जगह मशीन लगी होती और बिजली का उत्पादन होता।
- #यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों से बिल्कुल अलग है, क्योंकि यहां पर किसी भी मूर्ति की पूजा नहीं होती, बल्कि प्रथ्वी के गर्व से निकल रही 9 ज्वालाऔं की पूजा होती है।
- #9 ज्योतियौं को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका, अंजीदेवी के नाम से भी जाना जाता है।
- #इस मंदिर का निर्माण राजा भूमि चांद में करवाया था। बाद में पंजाब के महाराजा रंणजीत सिंह और हिमाचल के राजा संसारचंद मैं 1835 में इस मंदिर का निर्माण कराया था।
- #यही वजह है कि इस मंदिर में हिंदुओं की अटूट आस्था है।
- #बादशाह अकबर ने जब इस दिव्य मंदिर के बारे में सुना तो वह हैरान रह गया उसने अपनी सारी सेना बुलाई और खुद मंदिर की तरफ चल पड़ा।
- #बादशाह अकबर ने जलती हुई जवाला को बुझाने के लिए मंदिर में नहर का निर्माण करवाया। उसने अपनी सेना को मंदिर में जल रही ज्योति पर पानी डाल कर बुझाने का आदेश दिया। लाख कोशिश करने के बाद भी अकबर की सेना उन सारी ज्वालाऔं को नहीं बुझा पाई।
- #देवी मां की अपार महिमा को देखते हुए उसने सवा मान (पचास किलो) का सोने का छतर देवी मां के दरबार में चढ़ाया लेकिन माता में वह छतर कबूल नहीं किया और वह छतर गिरकर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया।
- #आज भी बादशाह अकबर का यह छतर ज्वाला देवी के मंदिर में रखा हुआ है।
Maa Jawala Devi History
- वायु मार्ग:
ज्वालाजी मंदिर जाने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा गगल में है जो कि ज्वाला जी से 46 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से मंदिर तक जाने के लिए कार और बस सुविधा भी उपलब्ध है। - रेल मार्ग:
ज्वालाजी जाने के लिए रेल सुविधा भी उपलब्ध है। रेल मार्ग से जाने वाले यात्री पठानकोट से चलने वाली स्पेशल ट्रेन की सहायता से मारंडा होते हुए पालमपुर आ सकते हैं। पालमपुर से मंदिर तक जाने के लिए बस या कार सुविधा उपलब्ध है। - सड़क मार्ग:
पठानकोट, दिल्ली, शिमला, आदि प्रमुख शहरों से होते हुए, ज्वालामुखी मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है। इसके आलावा यात्री अपने निजी वाहनों व हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग की बस के द्वारा भी वहां जा सकते है।
हमने ये जानकारी इतिहासिक किताबों और कई इतिहासिक ग्रन्थों से ली है कोई भी त्रुटि हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हैं अधिक जानकारी और सुझाव के लिए contactus@vaishnomata.in पर संपर्क करें।
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