Lord Shiva Vrat Katha Sawan । श्रावण मास के सोमवार की व्रत कथा

श्रावण मास के सोमवार की व्रत कथा।

श्रावण सोमवार की कथा के अनुसार अमरपुर नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था। नगर में उस व्यापारी का सभी लोग मान सम्मान करते थे। इतना सब कुछ होने पर भी वह व्यापारी अंतर्मन से बहुत दुखी था। क्योंकि उस व्यापारी की कोई संतान नहीं थी।

दिन रात उसे एक ही चिंता सताती रहती थी। इसकी मृत्यु के बाद उसके इतने बड़े व्यापार और धन संपत्ति को कौन संभालेगा। उत्तर पाने की इच्छा से व्यापारी हर सोमवार को भगवान शिव के व्रत पूजा करता था। प्रदोष काल में व्यापारी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव के सामने घी का दीपक जलाता था।

  • व्यापारी की भक्ति:

शिवजी

उस व्यापारी की भक्ति को देखकर एक दिन पार्वती जी ने भगवान शिव से कहा-“हे स्वामी”यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है। कितने दिन से यह आपके हर सोमवार के व्रत रख रहा है और आपकी पूजा कर रहा है। भगवान आप इस व्यापारी की मनोकामना क्यों पुरी नहीं करते।

भगवान शिव ने मुस्कुराते हुए कहा “हे पार्वती! इस संसार में सबको उसके कर्मों के अनुसार फल की प्राप्ति होती है। इस संसार में प्राणी जैसे कर्म करता है और वह वैसे ही फल पाता है।

इसके बावजूद भी पार्वती माता नहीं मानी। उन्होंने भगवान शिव से कहा ‘नहीं प्राणनाथ! आपको किस व्यापारी की इच्छा पूरी करनी ही पड़ेगी। यह आपका अनन्य भक्त है। प्रति सोमवार को यह आपके व्रत करता है और पूजा अर्चना करने के बाद आपको भोग लगाकर एक समय भोजन ग्रहण करता है। आपको इसे पुत्र प्राप्ति का वरदान देना ही होगा।

  • पार्वती जी का आग्रह:

पार्वती जी का इतना आग्रह देखकर भगवान शिव ने कहा-‘तुम्हारे आग्रह पर मैं इस व्यापारी को पुत्र प्राप्ति का वरदान देता हूं, लेकिन इसका पुत्र 16 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेगा।’

शिवाष्टक शिव भजन

उसी रात भगवान शिव ने स्वपन में उस व्यापारी को दर्शन देकर उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और कहा उसके पुत्र के 16 वर्षों तक जीवित रहने की बात भी बताएं।

भगवान के वरदान से व्यापारी को खुशी तो हुई लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उस खुशी को नष्ट कर दिया।पहले की तरह सोमवार का व्रत करता रहा। कुछ महीने पश्चात उसके घर मैं एक पुत्र ने जन्म लिया। पुत्र प्राप्ति से घर में बहुत खुशियां आ गए। बहुत ही धूमधाम से घर में पुत्र जन्म का समारोह मनाया गया।

  • व्यापारी को पुत्र जन्म:

व्यापारी को पुत्र जन्म की अधिक खुशी नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र की अल्पायु के रहस्य का पता था। यह रहे से घर में किसी को नहीं पता था।ब्राह्मणों ने उस पुत्र का नाम ‘अमर’ रखा।

जब उम्र 12 वर्ष का हुआ तो शिक्षा के लिए उसे वाराणसी भेजने का निश्चय किया। व्यापारी ने अमर के मामा दीपचंद को बुलाया और कहा कि अमर को शिक्षा प्राप्ति करने के लिए वाराणसी छोड़कर आए। अमर अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्ति करने के लिए चला गया ।रास्ते में जहां भी अमर और दीपचंद रात्रि विश्राम के लिए ठहरते वही यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन करवाते थे। लंबी यात्रा के बाद अमर और दीपचंद एक नगर में पहुंचे।

Sawan 2023

उसे नगरी के राजा की कन्या के विवाह की खुशी में पूरे नगर को सजाया गया था। निश्चित समय पर बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक आंख के काने होने के कारण बहुत चिंतित था। उस उसे अपने पुत्र की बहुत चिंता हो रही थी। उसको यह चिंता थी।कि अगर राजा को इस बात के बारे में पता चलेगा तो वह अपनी पुत्री की शादी मेरे पुत्र से कभी नहीं करवाएगा। जिसके कारण उसकी बहुत बदनामी होगी।

वर के पिता ने अमर को देखा तो उसके दिमाग में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों ना इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करवा देता हूं। विवाह के बाद उसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर में ले जाऊंगा।

Sawan 2023

वर के पिता ने उसी संबंध में अमर और दीपचंद से बात की। दीपचंद ने धन के लालच में वर के पिता की बात को स्वीकार कर लिया। अमर को दूल्हे के वस्त्र पहना कर राजकुमारी चंद्रिका से विवाह करवा दिया। राजा ने बहुत साधन देकर राजकुमारी को विदा किया।

अमर जब लौट रहा था तो सच्चे नहीं छिपा सका और उसने सारा सच राजकुमारी को बता दिया। उसने राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया-‘राजकुमारी चंद्रिका, तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ था, पर मैं वह नहीं हूं जिससे तुम्हारी शादी होने वाली थी। मैं तो वाराणसी में शिक्षा प्राप्त करने जा रहा हूं ।

अब तुम्हें जिसे नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा वह एक कान से काना है। वर के पिता ने मेरे मामा को धन का लालच देकर तुम्हारे साथ विवाह करने को कहा था। ताकि उसके पुत्र का सच तुम्हारे पिता को पता ना चले अगर तुम्हारे पिता को उसके पुत्र के बारे में पता चल जाता। तो उसके नगर में बहुत ही ज्यादा बदनामी होती। इसलिए उसने मेरी शादी तुम्हारे साथ है करवा दी थी।

  • राजकुमारी को सच पता चला:

उज्जैन महाकाल मंदिर

जब राजकुमारी को यह सारा सच पता चला तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इंकार कर दिया। राजा ने सब बातें जानकर राजकुमारी को महल में रख लिया। उधर अमर अपने मामा दीपचंद के साथ वाराणसी पहुंच गया। अमर ने गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया।

जब अमर की आयु 16 वर्ष पूरी हुई तो उसने एक यज्ञ करवाया। यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन करवाया और खूब अन्य वस्त्र दान किए। रात को अमर अपने शयनकक्ष में सो गया। शिव के वरदान के अनुसार शयनावस्था में ही अमर प्राण पखेरू उड़ गए। सूर्य उदय होने पर उसके मामा ने जब अमर को मृत् देखा। तो वह जोर जोर से रोने लगा।आसपास के लोग भी एकत्र होकर दुख प्रकट करने लगे।

मामा के रोने, विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने भी सुने। पार्वती जी ने भगवान से कहा-‘ प्राणनाथ’! मुझसे उसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। आप इस व्यक्ति के कष्ट अवश्य दूर करें।

भगवान शिव ने पार्वती जी के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर अमर को देखा तो पार्वती जी से बोले_’पार्वती! यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है। मैंने इसे 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। उसकी 16 वर्ष की आयु पूरी हो गई है।

पार्वती जी न्यू फिर भगवान शिव से निवेदन किया_’हे भगवान आप इस लड़के को जीवित करें नहीं तो इसके माता पिता भी पुत्र की मृत्यु के कारण रो-रोकर अपने प्राण त्याग देंगे। इस लड़के के पिता तो आप के परम भक्त है।

पार्वती जी की यह बात सुनकर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया।और वह कुछ ही पल में जीवित होकर उठ गया।

  • अमर का बापिस आना:

उज्जैन महाकाल मंदिर

शिक्षा समाप्त करके अमर मामा के साथ अपने नगर की ओर चल पड़ा। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे यहां अमर का विवाह हुआ था। उस नगर में भी अमर ने यज्ञ का आयोजन किया था। समीप से गुजरते हुए नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा।

राजा ने अमर को तुरंत पहचान लिया। अमर और उसके मामा को महल में ले गया और कुछ दिन उन्हें महल में रखकर बहुत-सा-धन- वस्त्र देकर राजकुमारी के साथ विदा किया।

रास्ते में सुरक्षा के लिए राजा ने बहुत से सैनिकों को भी साथ भेजा। दीपचंद ने नगर में पहुंचते ही एक दूत को भेजा उसने कहा कि सारे नगर में उनके वापस आने की सूचना दे दो। अपने बेटे अमर के जीवित वापस लौटने की सूचना से व्यापारी बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुआ।

व्यापारी ने अपनी पत्नी के साथ स्वयं को एक कमरे में बंद कर रखा था। भूखे प्यासे रहकर व्यापारी और उसकी पत्नी बेटी की प्रतीक्षा करते रहते थे। उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह दोनों भी अपने प्राण त्याग देंगे।

माता सती

व्यापारी अपनी पत्नी और मित्र के साथ नगर के द्वार पर पहुंचा। अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर, पुत्रवधू राजकुमारी चंद्रिका को देखकर उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा_’हे भक्त’मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रत कथा सुनाने से प्रसन्न होकर तुम्हारे पुत्र को लंबी आयु का वरदान दे दिया है। व्यापारी यह सुनकर बहुत ही प्रसन्न हुआ।

शिव के हर सोमवार को व्रत करने से व्यापारी के घर में बहुत सारी खुशियां लौट आई थी। हमारे शास्त्रों में लिखा है कि जो स्त्री-पुरुष सोमवार का सच्चे मन से व्रत करता है।और व्रत कथा सुनता है उसकी भगवान शिव सारी मनोकामना को पूर्ण करते हैं। ‘हर हर महादेव’

हमने ये जानकारी इतिहासिक किताबों और कई इतिहासिक ग्रन्थों से ली है कोई भी त्रुटि हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हैं अधिक जानकारी और सुझाव के लिए contactus@vaishnomata.in पर संपर्क करें।

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