Amarnath Cave Story – अमरनाथ गुफा की कथा

।। अमरनाथ गुफा की कथा।।

अमरनाथ धाम की यात्रा 2 मार्गो से तय की जाती है, एक बालटाल और दूसरा पहलगाम, मान्यता है कि भगवान शिव ने गुफा तक पहुंचने के लिए पहलगाम का मार्ग चुना था, जब भगवान शिव माता पार्वती को एकांत गुफा की ओर ले जा रहे थे तो सबसे पहले उन्होंने नंदी को त्यागा था आज यह स्थान पहलगाम नाम से जाना जाता है।

#एक बार देवी पार्वती ने देवों के देव महादेव से पूछा ऐसा क्यों है कि आप अजर है, अमर है लेकिन मुझे हर जन्म के बाद एक नए रूप में आकर फिर से वरसो तक तप करने के बाद ही आप मुझे प्राप्त होते हो। जब मुझे आपको पाना है तो मेरी तपस्या इतनी कठिन क्यों होती है, आपके कंठ में पड़ी नरमुंड माला और अमर होने के रहस्य क्या है?

अमरनाथ

#महादेव ने पहले तो देवी पार्वती के इन सवालों का जवाब देना उचित नहीं समझा, लेकिन पत्नीहठ के कारण कुछ गूढ़ रहस्य उन्हें बताने पड़े। शिव महापुराण में मृत्यु से लेकर अजर अमर तक के कई प्रसंग है, जिनमें एक साधन से जुड़ी अमरकथा बड़ी रोचक है।जिसे भक्तजन अमरत्व की कथा के रूप में जानते हैं।

#हर वर्ष हिमालय में अमरनाथ, कैलाश, और मानसरोवर, तीर्थ स्थलों में लाखों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। यहां जाने के लिए श्रद्धालु पैदल यात्रा करते हैं। शिव के प्रिय अधिकमास अथवा आषाढ़ पूर्णिमा से श्रावण मास की पूर्णिमा के बीच अमरनाथ की यात्रा भक्तों को खुद से जुड़े रहस्य के कारण और प्रासंगिक लगती है।

।। अमरनाथ गुफा की कहानी।।

अमरनाथ

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अमरनाथ की गुफा यह स्थान है, जहां भगवान शिव ने पार्वती को अमर होने के गुप्त रहस्य बताए थे, उसी दौरान वह उन दो दिव्य ज्योतियों के अलावा तीसरा कोई प्राणी उस गुफा में नहीं था। ना तो महादेव का नंदी, और ना ही उनका नाग, ना ही उनके सिर पर सजी गंगा, और ना ही गणपति, और कार्तिकेय उस गुफा में उनके साथ नहीं थे…..!

गुप्त स्थान की तलाश में महादेव ने अपने अपना वाहन नंदी को सबसे पहले छोड़ा नंदी जिस जगह पर छूटा उसे ही पहलगाम के नाम से जाना जाने लगा। अमरनाथ की यात्रा यहीं से शुरू होती है। यहां से थोड़ी आगे चलने पर शिवजी ने अपनी जटाओं से चंद्रमा को अलग किया था। जिस जगह उन्होने अपनी जटाओं को अलग किया उस जगह को चंदनवाडी के नाम से जाना जाने लगा। इसके बाद गंगा जी पंचतरणी में और कंठाभूषण सर्पों को शेषनाग पर छोड़ दिया, इस प्रकार इस पड़ाव का नाम शेषनाग पड़ा।

अमरनाथ यात्रा में पहलगाम के बाद अगला पड़ाव है गणेश टॉप, मान्यता है कि इस स्थान पर महादेव ने पुत्र गणेश को छोड़ा उस जगह को महागुणा के पर्वत से जाना जाने लगा। इसके बाद महादेव ने यहां पिस्सू नामक कीड़े को त्यागा, उस जगह को पिस्सू घाटी के नाम से जाना जाता है।

अमरनाथ

इस प्रकार महादेव ने अपने पीछे जीवनदायिनी पांचों तत्वों को स्वयं से अलग किया। इसके पश्चात पार्वती संग एक गुफा में महादेव ने प्रवेश किया। कोई तीसरा प्राणी यानी कोई व्यक्ति पशु या पक्षी गुफा के अंदर घुस कथा को ना सुन सके इसलिए उन्होंने चारों और अग्नि प्रज्वलित कर दी। फिर महादेव ने जीवन के गूढ़ रहस्य की कथा शुरू कर दी। जब महादेव पार्वती माता को कथा सुना रहे थे, तब कथा सुनते सुनते देवी पार्वती को नींद आ गई और वह सो गई, महादेव को इसके बारे में नहीं पता था और वह लगातार कथा को सुनाते जा रहे थे। उस समय दो सफेद कबूतर कथा को सुन रहे थे, और बीच-बीच में गूं-गूं की आवाज निकाल रहे थे। महादेव को लगा कि पार्वती मुझे सुन रही है और वह बीच-बीच में हुंकार रही है। महादेव कथा सुनाने में मगन थे, तो सुनाने के अलावा ध्यान कबूतरों पर नहीं गया।

अमरनाथ

दोनों कबूतर कथा को आराम से सुन रहे थे,जब कथा समाप्त होने पर महादेव का ध्यान पार्वती पर गया तो, उन्हें पता चला कि पार्वती तो सो गई है तो कथा कौन सुन रहा था? तब उनकी दृष्टि दो कबूतरों पर पड़ी तो महादेव को बहुत क्रोध आया। महादेव को क्रोधित देखकर कबूतरों का जोड़ा उनकी शरण में आ गया और बोला महादेव हमने आपसे अमर कथा सुनी है, यदि आप हमें मार देंगे, तो यह कथा झूठी हो जाएगी हमें पथ प्रदान करें। इस पर महादेव ने उन्हें वर दिया, कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव पार्वती की प्रतीक चिन्ह में निवास करोगे, अतः कबूतर का यह जोड़ा अमर हो गया और वह गुफा अमरकथा की साक्षी हो गई, इस तरह इस स्थान का नाम अमरनाथ पड़ा गया।

कहा जाता है कि जो भी अमरनाथ में भगवान महादेव के दर्शन के लिए जाता है आज भी उनको कबूतरों के दर्शन होते हैं। अमरनाथ गुफा में यह भी प्राकृतिक का ही एक चमत्कार है कि शिव की पूजा वाले विशेष दिनों में बर्फ के शिवलिंग अपना आकार ले लेते हैं। यहां मौजूद शिवलिंग किसी आश्चर्य से कम नहीं है। पवित्र गुफा में एक और मां पार्वती और श्रीगणेश के भी अलग से बर्फ के निर्मित प्रतिरूप के भी दर्शन किए जाते हैं

  • अमरनाथ की अमरकथा का रहस्य।

केदारनाथ से आगे है अमरनाथ और उससे आगे है कैलाश पर्वत। कैलाश पर्वत शिव जी का मुख्य स्थान है, तो केदारनाथ विश्राम भवन। हिमालय के कण-कण में शिव का स्थान है। बाबा अमरनाथ को आजकल स्थानीय मुस्लिम लोगों के प्रभाव के कारण ‘बर्फानी बाबा’ कहा जाता है जो कि अनुचित है। उन्हें बर्फानी बाबा इसीलिए कहा जाता है कि उनके स्थान पर प्राकृतिक रूप से बर्फ का शिवलिंग निर्मित होता है। शिवलिंग का निर्माण होना समझ में आता है।

amarnath

लेकिन इस पवित्र गुफा में ही शिवलिंग के साथ ही एक गणेश पीठ में एक पार्वती पीठ भी हिम से प्राकृतिक रूप से निर्मित होता है। पर्वती पीठ भी शक्तिपीठ स्थल है। यहां माता सती के कंठ का निपात हुआ था। पार्वती पीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां माता के अंग तथा अंगभूषण की पूजा होती है। ऐसे बहुत से तीर्थ है, जहां प्राचीन काल में सिर्फ साधु-संत ही जाते थे, और वहां जाकर वह तपस्या करते थे। लेकिन आजकल यात्रा सुविधाएं सुगम होने के चलते हुए व्यक्ति कैलाश पर्वत और मानसरोवर भी जाने लगे हैं। यह वह स्थान है जो हिंदुओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।

#अमरकथा: इस पवित्र गुफा में भगवान शंकर ने भगवती पार्वती को मोक्ष का मार्ग दिखाया था। इस तत्वविज्ञान को ‘अमरकथा’ के नाम से जाना जाता है, इसलिए इस स्थान का नाम अमरनाथ पड़ा। यह कथा भगवती पार्वती तथा भगवान शंकर के बीच हुए संवाद है। यह उसी तरह है जिस तरह कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद हुआ था।

#सती माता की कथा: सती ने दूसरा जन्म हिमालयराज के यहां पर और पार्वती के रूप में लिया। पहले जन्म में मैं दक्ष की पुत्री थी तथा दूसरे जन्म में वह दुर्गा बनी। एक बार पार्वती जी ने शंकर जी से पूछा, ‘मुझे इस बात का बड़ा आश्चर्य है कि आपके गले में नरमुंड माला क्यों है?’भगवान शंकर ने बताया, ‘पार्वती! जितनी बार तुम्हारा जन्म हुआ है उतने ही मुंडे मैंने धारण किए हैं’। पार्वती बोली, ‘मेरे शरीर नाशवान है, मृत्यु को प्राप्त होता है, परंतु आप अमर है, इसका कारण बताने का कष्ट करें।

मैं भी अजर-अमर होना चाहती हूं? भगवान शंकर ने कहा, ‘यह सब अमरकथा के कारण है।’ यह सुनकर पार्वती जी ने शिवजी से कहा कथा सुनने का आग्रह किया था। बहुत वर्ष तक भगवान शंकर ने इसे टालने का प्रयास किया, लेकिन जब पार्वती की जिज्ञासा बढ़ गई, तब उन्हें लगा कि अब कथा सुना देनी चाहिए। अब सवाल यह था की अमरकथा सुनाते वक्त कोई अन्य जीव इस कथा को ना सुने इसलिए भगवान शंकर पांच तत्व (पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, और अग्नि,) का परित्याग करके इन पर्वतमालाओं में पहुंच गए, और अमरनाथ गुफा में भगवती पार्वती जी को अमर कथा सुनाई थी।

हमने ये जानकारी इतिहासिक किताबों और कई इतिहासिक ग्रन्थों से ली है कोई भी त्रुटि हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हैं अधिक जानकारी और सुझाव के लिए contactus@vaishnomata.in पर संपर्क करें।

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